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[खण्ड:३
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन ७. अर्जुन मालाकार : अंगलिमाल
अन्तकृदशा सूत्र में अर्जुन मालाकार का कथानक है, जो यहाँ उपस्थापित है। मालाकार के जीवन में एक अनहोनी, विषम घटना घटित होती है । छः मनचले उद्धत पुरुष उसकी पत्नी के साथ बलात्कार करते हैं। अर्जुन के क्षोभ एवं उद्वेग की सीमा नहीं रहती। अपने उपास्य यक्ष मुद्गरपाणि को उद्दिष्ट कर उपालंभ तथा भर्त्सना के स्वर में उस द्वारा किये गये आत्मनिवदेन पर यक्ष उसकी देह में आविष्ट हो जाता है। मालाकार भारी मुद्गर लिये छःओं पर टूट पड़ता है और पत्नी पर भी । सातों समाप्त हो जाते हैं । प्रतिशोध की आग फिर भी बुझती नहीं। ज्यों सात को मारा, उसी तरह प्रतिदिन सात प्राणियों की हत्या के लिए वह संकल्प बद्ध हो जाता है । हिंसा का यह भयानक ताण्डव चलने लगता है। राजगह में सर्वत्र तहलका मच जाता है। यक्ष-बल का मानव-बल कहाँ मुकाबला करे। मगधराज श्रेणिक भी भयभीत हो जाता है।
हिंसा एवं अहिंसा के द्वन्द्व का प्रायः इसी प्रकार का कथानक मज्झिम निकाय में अंगुलिमाल का है जो एक भीषण दुर्दान्त दस्यु था, जिसके हाथ सदा रक्त से रंगे रहते थे। श्रावस्ती का जन-जन उससे थर्राता था । राजा प्रसेनजित् भी भयाक्रान्त था।
जैन कथानक में अर्जन माली के साथ एक बड़ी अन्त:प्रेरक घटना घटित होती है। संयोगवश भगवान् महावीर का राज गृह में पदार्पण होता है । वे नगरोपकण्ठ में अवस्थित गुणशील चैत्य में टिकते हैं। राजगह निवासी, उनका अनन्य उपासक, अहिंसा-परायण श्रेष्ठ पुत्र सुदर्शन अर्जुन मालाकार के भयावह खतरे के बावजूद किसी प्रकार अपने मातापिता की स्वीकृति प्राप्त कर भगवान् के दर्शन हेतु जाता है । मार्ग में अर्जुन मालाकार मिलता है। हिंसा और अहिंसा की टक्कर होती है। अहिंसा से हिंसा पराभूत हो जाती है। अर्जुन मालाकार सुदर्शन का कुछ नहीं बिगाड़ पाता। हिंसक मालाकार सहसा बदला जाता है, इतना बदल जाता है कि भगवान् महावीर की शरण में आकर वह प्रवजित हो जाता है। हिंसा पर अहिंसा की विजय का यह एक अद्भुत उदाहरण है।
उसी प्रकार का प्रसंग अंगुलिमाल के कथानक में घटित होता है। जिधर अंगुलिमाल था, लोगों द्वारा रोके जाने पर भी तथागत उधर जाते हैं। अंगुलिमाल उन पर हिंसात्मक वार करना चाहता है, किन्तु, उनके अहिंसा एवं करुणामय जीवन की योग-ऋद्धि से अंगुलिमाल का कायापलट हो जाता है। रक्त-रंजित अंगुलिमाल भिक्षु-जीवन स्वीकार कर लेता है।
दोनों ही कथानकों में घटना का पर्यवसान बड़ा मार्मिक है। पूर्वतन विद्वेष के कारण जैसे लोग अर्जुन को लाञ्छित, तिरस्कृत, उद्वेलित एवं ताडित-प्रताडित करते हैं, बुरी तरह मारते-पीटते हैं, वैसा ही अंगुलिमाल के साथ होता है। उसे भी लोग क्षत-विक्षत कर डालते हैं, किन्तु, दोनों ही शान्ति की प्रतिमूर्ति बने रहते हैं, अत्यन्त सहिष्णुता तथा क्षमा शीलता के साथ यह सब पी जाते हैं, अविचल बने रहते हैं।
दोनों ही अपने जीवन का अन्तिम साध्य साध लेते हैं, मालाकार मुक्त हो जाता है, अंगुलिमाल अर्हत् हो जाता है ।
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