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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग---राजा इषुकार : हत्थिपाल जातक ४११ उससे उधर का रास्ता पूछा । उसने बतलाया। तदनुसार वह उधर चल पड़ा। हस्तिपाल को ज्ञात हुआ कि राजा वन के किनारे तक पहुँच गया है तो वह सामने आया, आकाश में स्थित होकर उसको, सहवर्ती लोगों को धर्म का उपदेश दिया, आश्रम में लाया।
छः अन्य राजा उसी पथ पर
उस राजा की ज्यों और भी छः राजा वहाँ पहुँचे, प्रव्रज्या ग्रहण की। यों सात राजा अपनी सम्पत्ति, राज्य आदि का परित्याग कर धर्म- मार्ग पर आरूढ हुए। छत्तीस योजनविस्तीर्ण आश्रम प्रव्रजितों से भर गया। यदि कोई प्रव्रजित काम वितर्क आदि दुःसंकल्प मन में लाता तो महापुरुष उसे धर्म का उपदेश देते, ब्रह्म-विहार एवं योग-विधि के सम्बन्ध में समझाते । वह यथावस्थ होता। प्रत्रजितों में से अधिकांश ने ध्यानावस्था तथा अभिज्ञा साधित की। उनमें से दो तिहाई ब्रह्मलोक में उत्पन्न हुए। अवशिष्ट में से एक तिहाई ब्रह्मलोक में, एक तिहाई छः काम-लोकों में तथा एक तिहाई ऋषिवृन्द की सेवा कर मनुष्य लोक में तीन कुशल समापत्तियों के साथ उत्पन्न हुए। हस्तिपाल के धर्मशासन में न कोई नरक में, न पशु योनि में, न प्रेत योनि में और न असुर योनि में ही उत्पन्न हुआ।
इस ताम्रपर्णी द्वीप में कुद्दाल, मूगपक्ष, चूळसुत सोम, अयोधर पण्डित तथा हस्तिपाल के समागम में पृथ्वी चालक धर्म गुप्त स्थविर, कटकन्धकार वासी पुष्यदेव स्थविर, उपरिमण्डलक मलयवासी महासंघ रक्षित स्थविर, मलि महादेव स्थविर, भग्गिरिवासी महादेव स्थविर, वामन्त-पन्भारवासी महासीव स्थविर, काळ वल्लिमण्डपवासी महानाग स्थविर अभिनिष्क्रान्त हुए।।
अतएव भगवान् द्वारा अभिहित हुआ है-अभित्थरेथ कल्लाणे'-कल्याण कर्मों में -शुभ कर्मों में अभिरत रहो-संप्रवृत्त रहो। उस ओर जरा भी विलम्ब न करो।
शास्ता ने उक्त रूप में धर्म देशना दी और बतलाया कि भिक्षुओ ! न केवल अभी वरन् पहले भी तथागत अभिनिष्क्रान्त हुए हैं।
उपसंहार
उन्होंने बताया-"महाराज शुद्धोधन उस समय एसुकारी राजा था, महामाया राजमहिषी थी, काश्यप राजपुरोहित था, भद्र कापिलानी ब्राह्मणी थी, अनुरुद्धो अजपाल था, मौद्गलायन गोपाल था, सारिपुत्त अश्वपाल था, विशाल जन समुदाय या परिषद् बुद्धपरिषद् थी तथा हस्तिपाल तो मैं ही था।"
१. धम्मपद ११६
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