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___ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
गये। इस अभियान से अनेकानेक लोग प्रभावित हुए, साथ हो गये। कुमार हस्तिपाल का अनुगमन करने वाले जन-समुदाय का विस्तार तीस योजन हो गया। कुमार उसे साथ लिये हिमालय प्रदेश में प्रविष्ट हुआ।
स्वर्ग में शक्र को पता चला कि कुमार हस्तिपाल वाराणसी से अभिनिष्क्रमण कर हिमालय पर गया है। बहुत बड़ा जन-समुदाय उसके साथ है ! उन सब के आवास की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। शक ने विश्वकर्मा को स्मरण किया। विश्वकर्मा उपस्थित हुआ। शक्र ने आज्ञा दी कि कुमार हस्तिपाल तथा उसके अनुयायी वृन्द के लिए हिमालय पर एक आश्रम का निर्माण करो, जो छत्तीस योजन लम्बा और पन्द्रह योजन चौड़ा हो । उसमें प्रवजितों के लिए अपेक्षित साधन सामग्री रखो।
विश्वकर्मा ने शक्र का आदेश शिरोधार्य किया। उसने गंगा के किनारे पर शक के आदेशानुरूप छत्तीस योजन लम्बे तथा पन्द्रह योजन चौड़े, अनेक पर्णशालाओं से युक्त सुन्दर आश्रम का निर्माण किया । पर्णशालाओं में प्रवजितों के लिए अपेक्षित आसन, पीढे आदि सभी वस्तुओं की समीचीन व्यवस्था की। प्रत्येक पर्णशाला के आगे रात्रि दिवसोपयोगी चंक्रमण-भूमि, बैठने के लिए सहारे हेतु चूने से पुते हुए पटड़े, स्थान-स्थान पर विविध प्रकार के सुरमित कुसुमों से आच्छादित वृक्ष प्रत्येक चंक्रमण-भूमि के किनारे पर जल पूर्ण कूप, उनके समीप फलयुक्त वृक्ष-इन सबकी रचना की। उनमें से प्रत्येक वृक्ष सब प्रकार के फल देने की विशेषता लिये था। यह सब निर्माण देव-प्रभाव से सम्पन्न हुआ।
इस प्रकार विश्वकर्मा ने आश्रम का निर्माण कर, सभी आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था कर दीवाल पर इस प्रकार अंकित किया कि जो भी प्रवजित होना चाहें, प्रवजित हों, इन वस्तुओं का उपयोग करें । देव-प्रभाव से विश्वकर्मा ने भयावह, अप्रिय शब्द, पशु, पक्षी, आदि से देखने में बुरे, अवाञ्छित प्रतीत होने वाले प्राणियों से उस स्थान को विमुक्त किया। यह सब कर विश्वकर्मा अपने स्थान को चला गया।
हस्तिपाल विशाल जन-समुदाय के साथ पगडंडी के सहारे आगे बढ़ता गया। वह शक्र द्वारा निर्मापित आश्रम के पास पहुँचा। आश्रम में प्रवेश किया, वहाँ दीवार पर जो लेख अंकित था, उसे पढ़ा, सोचा-ऐसा लगता है, शक्र ने हमारे महा अभिनिष्क्रमण की बात जान ली है। तदनुसार यह सब व्यवस्था उसने समायोजित की है । हस्तिपाल ने दरवाजा खोला। वह पर्णशाला में प्रविष्ट हुआ। ऋषि-कल्प प्रव्रज्या-लिंग स्वीकार किये। चंक्रमण भूमि में आया। सहवर्ती समग्र जन-समुदाय को प्रवजित किया । आश्रम का परिलोकन किया। तरुण पुत्रों तथा महिलाओं को मध्यवर्ती स्थल में अवस्थित पर्णशालाएं दी, उसके बाद वृद्धा स्त्रियों को, तदनन्तर वन्ध्या स्त्रियों को तथा चारों ओर घेर कर पुरुषों को पर्णशालाएं दीं।
सूनी वाराणसी : एक राजा : विरक्ति
वाराणसी बिलकुल खाली हो गई थी। किसी राजा ने यह सुना। वह वहां आया। उसने सुसज्जित नगर को देखा, राजभवन में गया। यत्र-तत्र रत्न-राशियाँ पड़ी थीं। उसने साश्चर्य सोचा--इस प्रकार नगर, राजभवन, धन, वैभव का परित्याग कर स्वीकृत प्रव्रज्या वास्तव में महान् प्रव्रज्या होगी। नगर, राजमहल और सम्पत्ति में वह विमोहित नहीं हुआ। उसने उसी मार्ग का अवलम्बन करने का विचार किया। एक मद्यप घूम रहा था। राजा ने
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