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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-राजा इषुकार : हस्थिपाल जातक ४०६
महारानी- “मैं प्रव्रज्या स्वीकार करूंगी।"
इस पर अमात्य-पत्नियां बोलीं-"महारानी हमारा भी यही विचार है। हम भी प्रव्रज्या ग्रहण करेंगी।"
महारानी प्रव्रज्या हेतु तैयारी करने लगी। राज-भवन में जो स्वर्णागार-स्वर्णसंग्रहालय थे, महारानी ने उन्हें सबके लिए खुलवा दिया। राज्य में एक गड़ा हुआ निधान था। रानी ने उस सम्बन्ध में एक स्वर्ण-पट्ट पर अंकित करवाया कि अमुक स्थान पर राज्य का गड़ा खजाना है, मैं उसे दत्त-अपने द्वारा दिया हुआ घोषित करती हूँ, जो चाहें उसे ले जाएं।
उस स्वर्ण लेखपट्ट को एक ऊंचे स्थान पर खंभे पर बंधवा दिया, उस सम्बन्ध में सर्वत्र मुनादी फिरवा दी। समत्र मर-नारी उसी पथ पर
___ इस प्रकार महारानी ने राज्य, वैभव, धन, सम्पत्ति आदि का त्यागकर नगर से अभिनिष्क्रमण किया। सारे नगर में आकुलता व्याप्त हो गई। नागरिक चिन्तातुर हो उठे। वे विचारने लगे-हमारे महाराज चले गये, महारानी जा रही है, हम अब क्या करें। उनमें वैराग्योदय हुआ। अपने भरे-पूरे घर छोड़कर पुत्रों को साथ लिए महारानी के पीछे चल पड़े। घर, दूकानें, धन, संपत्ति ज्यों-की-त्यों पड़ी रह गई। मुड़कर उन्हें किसी ने देखा तक नहीं । सारा नगर जन-शून्य हो गया। महारानी तीन योजन लम्बे जन-समूह को साथ लिए वहाँ पहुची, जहाँ चारों कुमार, पुरोहित, ब्राह्मणी और राजा थे। कुमार हस्तिपाल ने उन्हें देखा, आकाश में स्थित हो धर्मोपदेश दिया।
आवास आश्रम
बारह योजन-विस्तृत अनुयायी वृन्द को साथ लिये हस्तिपाल ने हिमालय की ओर प्रयाण किया। सारे काशी राष्ट्र के समक्ष एक आश्चर्य पूर्ण घटना थी। लोग सोचने लगेकितनी बड़ी बात है, हस्तिपाल बराह योजन-विस्तीर्ण वाराणसी राज्य को खाली कर हिमालय की ओर जा रहा है। हमारी उनके आगे क्या बिसात है। काशी राष्ट्र के लोग स्तब्ध रह
(पृष्ठ ४०८ का शेष)
राजा च पब्बज्ज अरोचयित्थ, हित्वान कामानि यथोधिकानि ॥२३॥ अच्चेन्ति काला तरयन्ति रत्तिओ, वयोगुणा अनुपुब्बं जहन्ति । अहंपि एका चरिस्सामि लोके, हित्वान कामानि मनोरमानि ||२४|| अच्चेन्ति काला तरयन्ति रत्तिओ, हित्वान कामानि यथोधिकानि ॥२५॥ अच्चेन्ति काला तरयन्ति रत्तिओ, सीतिभूता सब्बं अतिच्च संगं ॥२६।।
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