________________
४०६
आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
ब्राह्मणी-"मैं प्रव्रज्या ग्रहण करूंगी।" ब्राह्मणियाँ बोली-"हम भी प्रव्रज्या ग्रहण करेंगी।"
ब्राह्मणी ने अपने धन, वैभव का परित्याग कर दिया । अपनी योजन भर अनुयायिनी ब्राह्मण-महिलाओं को साथ लिए वहाँ पहुँची, जहाँ उसके पुत्र थे, पति था। हस्तिपाल ने आकाश स्थित हो, अपनी माता को एवं परिषद् को धर्म का उपदेश दिया।
राजा ने जब पुरोहित को नहीं देखा तो कर्मचारियों से पूछा-"पुरोहित
कहाँ हैं ?"
कर्मचारी बोले-"राजन् ! पुरोहित अपने धन, वैभव का परित्याग कर अपने पुत्रों के पास चला गया है। योजन भर लम्बा जन-समुदाय उसके पीछे-पीछे गया है । उसके बाद अगले दिन ब्राह्मणी भी सब कुछ छोड़ कर अपनी अनुयायिनी योजन भर विस्तीर्ण ब्राह्मण-महिलाओं को साथ लिये वहीं चली गई है।"
जिस संपत्ति का कोई स्वामी नहीं होता, उत्तराधिकारी नहीं होता, वह राजा की होती है। इस व्यवस्था के अनुसार राजा ब्राह्मण के घर से सारी सम्पत्ति अपने यहाँ मंगवाने लगा।
राजमहिषी द्वारा राजा को प्रतिबोध
राजमहिषी ने अपनी परिचारिकाओं से पूछा-"महाराज क्या कर रहे हैं ?"
परिचारिकाओं ने बतलाया-"वे पुरोहित के घर से उसकी सम्पत्ति राजकोश में मंगवा रहे हैं।"
राजमहिषी-"पुरोहित कहाँ है ;"
परिचारिकाएँ-"पुरोहित धन, वैभव का परित्याग कर प्रवजित होने चला गया है। उसकी पत्नी ने भी उसी मार्ग का अनुसरण किया है।"
महारानी ने जब यह सुना तो सहसा उसके मन में विचार आया-कितना आश्चर्य है, जिस वैभव को पुरोहित के चारों पुत्र छोड़ गए, पुरोहित छोड़ गया, पुरोहित-पत्नी छोड़ गई, वह तो एक प्रकार से उन द्वारा परित्यक्त मल है, थका गया थक है, महाराज उसे अपने यहाँ मंगवा रहे हैं, वे कितने मोह-मूढ हैं। मुझे चाहिए, मैं उन्हें समझाऊं । एतदर्थ मैं एक उपमा का प्रयोग करूं।
महारानी ने कसाई के यहाँ से मांस मंगवाया। राज-प्रांगण में मांस का ढेर लगवा दिया। एक सीधा रास्ता छोड़कर उस मांस-राशि पर जाल तनवा दिया। गीधों की दष्टि बड़ी तेज होती है । उन्होंने दूर से ही मांस का ढेर देखा। उड़ते हुए वहाँ आये और नीचे उतरे, मांस खाने लगे। उन गीधों में जो बुद्धिशील थे, उन्होंने देखा-मांस पर जाल तना है-केवल एक सीधा रास्ता खुला है। उन्होंने विचारा-मांस खा लेने से उनकी देह भारी हो गई है। वे सीधे नहीं उड़ पायेंगे। यह सोचकर उन्होंने खाये हुए मांस का वमन कर दिया, हलके हो गये, वहाँ से सीधे उड़कर चले गए। जो गीध बुद्धिहीन थे, मूढ़ थे, उन्होंने उन द्वारा परित्यक्त वमित मांस खाया । शरीर और भारी हो गया। वे सीधे उड़ नहीं सके, जाल में फंस गये।
परिचारक पूर्वादेश के अनुसार जाल में फंसे गीघों में से एक गीध रानी के पास लाये। रानी ने गीध को लिया। वह राजा के पास आई। राजा से बोली-"महाराज!
For Private & Personal Use Only
Jain Education International 2010_05
www.jainelibrary.org