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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३
जन्म लेने की हमारी अभिरुचि नहीं है, न प्रयोजन ही। हम राजपुरोहित के घर में जन्म लेंगे, कुमारावस्था में ही हम सांसारिक सुख-भोगों का परित्याग कर प्रव्रज्या ग्रहण करेंगे।" शक ने कहा--"बहुत अच्छा, ऐसा ही करो।" उनसे तदनुरूप प्रतिज्ञा करवा ली। शक वापस आया । वृक्ष-देवता से सारी बात कही । वृक्ष-देवता परितुष्ट हुआ । उसने कृतज्ञ-भाव से शक्र को प्रणाम किया और वह वापस अपने स्थान पर लौट आया।
सातवां दिन आया । पुरोहित ने कतिपय सुदृढ़, सबल मनुष्यों को साथ लिया, कुठार आदि शस्त्र लिए। वह वृक्ष के पास आया। उसके नीचे गया। वृक्ष की डाली को पकड़ा। डाली पकड़ कर वह कहने लगा-'वृक्ष-देवता ! तुम्हारे समक्ष याचना, अभ्यर्थना करते मुझे आज सात दिन हो गये हैं । मेरी प्रार्थना तुमने नहीं सुनी । अब तुम्हारा विनाश-काल आ गया है।"
यह सुनकर देवता वृक्ष के कोटर से बड़ी शान के साथ बाहर निकला, मधुर वाणी में उसे पुकारा, उससे कहा-ब्राह्मण ! एक पुत्र की बात छोड़ दो, तुम्हें एक के स्थान पर चार पुत्र दूंगा।" ब्राह्मण ने देव से कहा- मैं अपने लिए पुत्र नहीं चाहता, मेरे राजा को पुत्र दो।"
देव--- "ऐसा नहीं होगा, ये चारों पुत्र तुम्हीं को मिलेंगे। ब्राह्मण-"तो देवता ! ऐसा करो, दो पुत्र मुझे दो, दो मेरे राजा को दो।"
वृक्ष देवता--''ब्राह्मण ! राजा को पुत्र नहीं मिलेंगे, चारों तुम्हीं को मिलेंगे और यह भी सुन लो, पुत्र तो तुम्हें मिल जायेंगे, पर, वे तुम्हारे घर में नहीं टिकेंगे, वे कुमारावस्था में ही प्रव्रज्या स्वीकार कर लेंगे।"
। ब्राह्मण - 'तुम पुत्र दे दो, उन्हें प्रवजित होने देना, न होने देना—यह हमारा कार्य है। इसे हम देखेंगे।"
वृक्ष-देवता ने ब्राह्मण को चार पुत्रों का वरदान दिया और वह अपने आवास-स्थान में चला गया गया ।
हस्तिपाल : अश्वपाल : गोपाल : अजपाल
___इस घटना के बाद वृक्ष-देवता का लोगों में पूजा-सत्कार बढ़ गया। स्वर्ग-स्थित प्रतिज्ञात ज्येष्ठ देवकुमार अपना देवायुष्य पूर्णकर ब्राह्मणी के गर्भ में आया। यथासमय जन्मा। यथासमय नामकरण संस्कार हुआ । उसका नाम हस्तिपाल रखा गया। जैसा कि वृक्ष-देवता ने चेतावनी दी थी, पुरोहित प्रारंभ से ही इस ओर जागरूक एवं प्रयत्नशील था कि अपने पुत्रों को किसी भी तरह हो, प्रव्रज्या से बचाए। इसीलिए उसने शिशु को लालनपालन हेतु हस्तिपालों-हाथीवानों को सम्भला दिया। फिर यथासमय दूसरा देव-पुत्र ब्राह्मणी के गर्भ में आया। जन्म हुआ। उसका नाम अश्वपाल रखा गया। उसे पालन-पोषण हेतु अश्वपालों-घोड़ों की देख-रेख करने वालों साईसों के पास रखा गया।
यथासमय तीसरा देव-पुत्र पुरोहित-पत्नी के गर्भ में आया। जन्म हुआ। उसका नाम गोपाल रखा गया। उसका लालन-पालन गोपालकों-ग्वालों को सौंपा गया। चौथा देवपुत्र भी उसी प्रकार ब्राह्मणी के गर्भ में आया, जन्मा। उसका नाम अजपाल रखा गया। वह बकरियों का पालन करने वालों-देख-रेख करने वालों के पास रखा गया। चारों बालक
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