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________________ ३६६ ही समय में सब प्रकार के दुःखों से मुक्त हो गये ।" हत्थिपाल जातक कथा-प्रसंग आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन शास्ता जेतवन में विहार करते थे । उन्होंने एक प्रसंग पर चिरस्स वत पस्साम इत्यादि गाथा का जो नैष्क्रम्य के सम्बन्ध में थी, आख्यान किया। सोत्सुक भिक्षुओं को संबोधित कर उन्होंने कहा -' - भिक्षुओ ! तथागत ने केवल अभी निष्क्रमण किया है, पहले भी वे अभिनिष्क्रान्त हुए हैं। इस सन्दर्भ में शास्ता ने निम्नांकित रूप में पूर्व जन्म की कथा आख्यात की - राजा एकारी और पुरोहित का सौहार्द पूर्व समय का प्रसंग है, एसुकारी नामक राजा था, वाराणसी उसकी राजधानी थी । राजपुरोहित राजा का बाल्यावस्था से सुहृद् था, स्नेहशील सहयोगी था । दोनों में बड़ी आत्मीयता थी । दुःसंयोग ऐसा था, दोनों निःसन्तान थे। एक बार वे दोनों बैठे थे। एकदूसरे को अपने मन की, सुख-दुःख की बात कहते थे। दोनों चिन्तन करने लगे- हमारे पास विपुल संपत्ति है, वैभव है, पर हमारे कोई सन्तान नहीं है- --न पुत्र ही है, न पुत्री ही, क्या करें । यो विचार-विमर्श के बीच राजा बोला - "यद्यपि इस सम्बन्ध में हमारे वश में तो कुछ नहीं है, पर, संयोगवश यदि तुम्हारे यहाँ पुत्र का जन्म हो और मेरे कोई सन्तान न हो तो मैं यह प्रतिज्ञा करता हूं कि वह तुम्हारा पुत्र ही मेरे राज्य का अधिपति होगा, मेरा उत्तराधिकारी होगा । राजा ने आगे कहा- “यदि तुम्हारे सन्तान न हो और मेरे पुत्र हो तो वह तुम्हारी समग्र सम्पत्ति का स्वामी होगा ।" इस प्रकार दोनों ने वचन बद्धता की । 1 [ खण्ड : ३ दरिद्रा और उसके सात पुत्र एक दिन की बात है, पुरोहित अपनी जागीरदारी के गांव का निरीक्षण करने गया । निरीक्षण कर वापस लौट कर जब वह नगर के दक्षिण दरवाजे से नगर में प्रविष्ट हो रहा था, तो नगर के बाहर उसकी निगाह एक स्त्री पर पड़ी, जो बहुत दरिद्र थी, सात पुत्रों की मां थी । उसके सातों ही बच्चे नीरोग थे – स्वस्थ थे। एक बच्चे ने भोजन पकाने की हांडी हाथ मे ले रखी थी । एक ने चटाई ले रखी थी। एक बच्चा सबके आगे-आगे चलता था और एक पीछे-पीछे। एक बच्चे ने अपनी मां की अंगुलि पकड़ रखी थी। एक माँ की गोद में था और एक कन्धे पर । उस दरिद्रा तथा उसके बच्चों को देखकर पुरोहित उसके विषय में जानने को उत्सुक हुआ। उसने उस नारी से पूछा - "भद्रे ! इन बालकों का पिता कहाँ है 11 स्त्री ने कहा – “मालिक ! इनका कोई एक नियत पिता नहीं है ।' पुरोहित - 'भद्रे ! फिर ये सात पुत्र तुम्हें किस प्रकार प्राप्त हुए ?” जब उस स्त्री को बताने के लिए और कोई आधार प्राप्त नहीं हुआ तो उसने नगर के द्वार पर स्थित बरगद के पेड़ की ओर संकेत करते हुए उत्तर दिया- 'स्वामिन् ! इस १. आधार - उत्तराध्ययन सूत्र, चतुर्दश अध्ययन, चूर्णि एवं वृत्ति । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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