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________________ तत्त्व : माचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-राजा इषुकार : हत्थिपाल जातक ३८६ ६. राजा इषुकार : हत्थिपाल जातक उत्तराध्ययन सूत्र, चतुर्दश अध्ययन, चूणि एवं वृत्ति में राजा इषुकार एवं भृगु पुरोहित का कथानक है । इषुकार की रानी कमलावती, पुरोहित पत्नी मंशा तथा पुरोहित के दो पुत्र इसके अन्य पात्र हैं। ___ इसी प्रकार का कथानक हथिपाल जातक में है। वहाँ वर्णित राजा का नाम इस राजा से मिलता-जुलता एसुकारी है । राजा, पुरोहित, रानी, पुरोहित-पत्नी एवं पुरोहित के चार पुत्र हस्तिपाल, अश्वपाल, गोपाल तथा अजपाल-इस कथानक के पात्र हैं। भृगुपुत्र विरक्त हैं, साधना-पथ पर अग्रसर होना चाहते हैं। पिता भृगु उन्हें वैषयिक सुख, समृद्धि और वैभव का आकर्षण दिखाकर संसार में रखना चाहता है। पुत्रों के साथ पिता का लम्बा धर्म-संवाद चलता है। पिता जहाँ संसार की सार्थकता कहलाता है, पुत्र उसकी नश्वरता बताते हुए धर्म का महत्त्व स्थापित करते हैं। परिणाम यह होता है, जहां पिता पुत्रों को भोगों में उलझाये रखने का लक्ष्य लिये था, वहाँ वह पुत्रों से प्रभावित होकर स्वयं उसी मार्ग का अनुसरण करने को उद्यत हो जाता है, जिस पर उसके पुत्र अग्रसर होना चाहते हैं। पत्नी यशा भी उसी पथ का अवलम्बन करती है। ऐसा ही घटनाक्रम हस्थिपाल जातक में है। पुरोहितपुत्र हस्तिपाल विरक्त है। पिता नहीं चाहता, वह प्रव्रज्या स्वीकार करे। दोनों अपना पक्ष रखते हैं। विशद धर्म-चर्चा होती है। हस्तिपाल का समाधान नहीं होता। वह प्रव्रज्या-पथ पर निकल पड़ता है। पिता द्वारा बहुत समझाये जाने के बावजूद उसके तीनों अनुज अपने अग्रज का अनुसरण करते हैं । पुत्रों के वैराग्य से अभिभूत होकर पुरोहित एवं उसकी पत्नी वही पथ अंगीकार कर लेते हैं। दोनों कथानकों में एक बड़ा मार्मिक प्रसंग है, पुरोहित भृगु का सारा परिवार जब संयम-पथ पर आरूढ़ हो जाता है, तो उसकी संपत्ति का कोई उत्तराधिकारी नहीं रहता। नियमानुसार राजा उसे अधिकृत करना चाहता है। ब्राह्मण द्वारा परित्यक्त संप वमन से उपमित करती हुई रानी राजा को प्रतिबोध देती है । वैसा ही हस्थिपाल जातक में है। वहां भी पुरोहित द्वारा सपरिवार गृह-त्याग कर देने के बाद राजा उसकी संपत्ति को स्वायत्त करना चाहता है तो रानी उस संपत्ति को थूक के सदृश हेय बतलाती है। दोनों कथानकों में राजा और रानी संसार को त्याग देते हैं। हस्थिपाल जातक में एक विशेषता है। जहाँ जैन कथा में पुरोहित, उसकी पत्नी, राजा एवं रानी एकाकी प्रवजित होते हैं, वहाँ बौद्ध कथा में पुरोहित अनेक ब्राह्मणों, राजा अनेक सामन्तों, पुरोहितपत्नी अनेक ब्राह्मणियों तथा राजमहिषी अनेक सामन्त-पत्नियों के साथ प्रव्रज्या-पथ अपनाती है । प्रजाजन भी उनका अनुसरण करते हैं। वाराणसी खाली हो जाती है। अन्य सात राज्य भी इस अद्भुत तितिक्षामय घटनाक्रम से प्रभावित होकर उसी मार्ग का अवलम्बन करते हैं । त्याग-तितिक्षा एवं साधना का एक विचित्र-सा वातावरण बनता है, जिससे बहुजन हिताय' की ध्वनि मुखरित होती है, किन्तु, जो स्वाभाविक कम भावाविष्ट अधिक प्रतीत होता है। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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