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________________ ३८८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन खण्ड : ३ राजा के मन में वैराग्य भाव जागा । उसने अपने बड़े बेटे को राज्य सौंप दिया, सेना को अपने निश्चय से अवगत करा दिया और वह स्वयं हिमालय की दिशा में प्रस्थान कर गया । बोधिसत्व को अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा संभूत का उधर आना अवगत हुआ। वे ऋषि-समुदाय सहित उसके सामने आये, अपने स्थान पर ले गये, उसे प्रव्रजित किया, योगाभ्यास का शिक्षण दिया । वैराग्य तथा साधना द्वारा संभूत ने ध्यान-सिद्धि प्राप्त की । अन्त में दोनों भाई-चित्त और संभूत ब्रह्मलोक को चले गये । शास्ता ने भिक्षुओं को सम्बोधित कर कहा – “भिक्षुओ ! जैसा मैंने संकेत किया था, पुरावर्ती ज्ञानी जन तीन चार जन्म- पर्यन्त भी एक दूसरे के प्रति विश्वासभाजन तथा सात्त्विक - स्नेहानुबद्ध रहे हैं। आनन्द उस समय संभूत पंडित था, चित्त पंडित मैं ही था।" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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