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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
खण्ड : ३
राजा के मन में वैराग्य भाव जागा । उसने अपने बड़े बेटे को राज्य सौंप दिया, सेना को अपने निश्चय से अवगत करा दिया और वह स्वयं हिमालय की दिशा में प्रस्थान कर गया । बोधिसत्व को अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा संभूत का उधर आना अवगत हुआ। वे ऋषि-समुदाय सहित उसके सामने आये, अपने स्थान पर ले गये, उसे प्रव्रजित किया, योगाभ्यास का शिक्षण दिया । वैराग्य तथा साधना द्वारा संभूत ने ध्यान-सिद्धि प्राप्त की । अन्त में दोनों भाई-चित्त और संभूत ब्रह्मलोक को चले गये ।
शास्ता ने भिक्षुओं को सम्बोधित कर कहा – “भिक्षुओ ! जैसा मैंने संकेत किया था, पुरावर्ती ज्ञानी जन तीन चार जन्म- पर्यन्त भी एक दूसरे के प्रति विश्वासभाजन तथा सात्त्विक - स्नेहानुबद्ध रहे हैं। आनन्द उस समय संभूत पंडित था, चित्त पंडित मैं ही था।"
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