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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चित्त और संभूत : चित्त-संभूत जातक ३८१ बाण छोड़ा। एक ही आघात ने दोनों की जान ली। वहाँ से वे नर्मदा नदी के तट पर पक्षी के रूप में उत्पन्न हुए। बड़े हुए । दोनों में बड़ी घनिष्ठता एवं आत्मीयता थी। दोनों बड़े प्रेम से साथ रहते, साथ-साथ खाना-पीना करते, साथ-साथ विश्राम करते। एक दिन खानापीना करने के बाद अपने सिर से सिर मिलाए, चोंच से चोंच मिलाए वे प्रेम के साथ खड़े थे । एक चिड़ीमार वहाँ आया। उसने उन्हें देखा, पकड़ लिया और मार डाला। पूर्व-स्मृति वहाँ से च्यवकर चित्त पंडित कोशाम्बी नगरी में राजपुरोहित के घर पुत्र-रूप में उत्पन्न हुआ। संभूत पंडित उत्तर पांचाल देश के राजा के यहाँ पुत्र-रूप में जन्मा। नामकरण के दिन उनको अपने पहले के जन्मों की स्मृति हो आई । संभूत पंडित उस स्मृति को कायम नहीं रख सका । वह क्रमशः भूलता गया। उसे केवल अपना चांडाल के यहाँ तक का स्मरण रहा। चित्त पंडित को पिछले चारों जन्म भलीभाँति स्मरण रहे । वह जब सोलह वर्ष का हआ, तब वह अपने घर से निकल पड़ा। उसने ऋषि-प्रव्रज्या स्वीकार की एवं ध्यानअभिज्ञा सिद्ध की । ध्यान की आनन्दानुभूति करते हुए वह अपना समय व्यतीय करने लगा। मंगल-गीत : दो गाथाएँ उधर पांचाल-नरेश की मृत्यु हो जाने पर उसके राजकुमार के रूप में उत्पन्न संभूत पंडित राज्याभिषिक्त हुआ। जिस दिन उसने राजछत्र धारण किया, उसी दिन मंगल गीत या उल्लास वाक्य के रूप में उसने दो गाथाएँ कहीं। अन्तःपुर की महिलाएँ तथा मागध-जन राजा का यह मंगल-गीत गाते । नागरिक-वृन्द भी उसे अपने राजा का प्रिय गीत जानकर गाने लगे। इस प्रकार वे गाथाएं राजा के मंगल-गीत या प्रिय-गीत के रूप में सर्वत्र प्रसिद्ध एवं प्रसृत हो गई। उद्बोधन का उपक्रम चित्त पंडित उस समय हिमालय पर रहता था। उसने ध्यान किया-मेरा भाई संभूत अभी पांचाल देश में राज्याभिषिक्त हुआ है या नहीं, उसने राज-छत्र धारण किया है या नहीं। चित्त पंडित को अपने विशिष्ट ज्ञान द्वारा ज्ञात हो गया कि संभूत पांचाल का राजा हो गया है। चित्त, संभूत को धर्म के मार्ग पर लाना चाहता था, किन्तु, उसने सोचा-संभूत अभी-अभी नया राजा हुआ है। इस समय इसे समझा पाना संभव नहीं होगा। वह जब वृद्ध हो जायेगा, तब उसके पास जाऊंगा, धर्मोपदेश दूंगा, उसे प्रव्रजित करूंगा । पचास वर्ष की अवधि व्यतीत हो गई। राजा के पुत्र-पुत्रियां बड़े बड़े हो गए। उस समय चित्त पंडित अपनी विशिष्ट ऋद्धि द्वारा आकाश-मार्ग से वहाँ पहुँचा । बगीचे में नीचे उतरा, मंगल-शिला पर स्वर्ण-प्रतिमा की ज्यों स्थित हुआ। गीत-कुशल बालक चित्त पंडित ने देखा, एक बालक लकड़ियां बटोर रहा है और साथ-ही-साथ यह गीत गा रहा है । चित्त पंडित ने गीत के शब्द सुने । उस बालक को अपने पास बुलाया। बालक आया। उसने चित्त पंडित को प्रणाम किया, सामने खड़ा हो गया। चित्त पंडित ने ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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