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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड
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का नाम मुनिचन्द्र था । वह सागरचन्द्र नामक एक श्रमण के पास प्रवजित हुआ। एक समय की घटना है, श्रमण मुनिचन्द्र विहार करते-करते एक वन में मार्ग भूल गये । वे क्षुधा, पिपासा से व्याकुल थे। चलते-चलते एक गोकुल-गोशाला में आये । वहाँ के चार गोपालों ने उनका सभक्ति स्वागत किया । गोपालों ने मुनि को दुग्ध-दान दिया।
गोपालों द्वारा श्रमण-दीक्षा
__मुनि ने गोपालों को धर्मोपदेश दिया । गोपाल संस्कारी थे। उनमें वैराग्य-भाव जागा। उन चारों ने मुनिवर के पास श्रमण-दीक्षा ग्रहण की। चारों संयम का पालन करते रहे। उनमें से दो ने तो अति निर्मल भाव से संयम का पालन किया। शेष दो संयम का पालन तो करते रहे, पर, घृणा के साथ। चारों अपना आयुष्य पूर्ण कर प्रथम स्वर्ग में देवरूप में उत्पन्न हुए।
उत्सर भव
जिन दो गोपाल-मुनियों ने घृणा-पूर्वक संयम का पालन किया था, वे स्वर्ग से च्युत होकर शंखपुर नामक नगर में शांडिल नामक ब्राह्मण की यशोमती नामक दासी के यहाँ पुत्र-रूप में उत्पन्न हुए । उन दोनों भाइयों की वहाँ सर्पदंश के कारण मृत्यु हो गई। तब वे कालिंजर नामक पर्वत पर मृग-रूप में उत्पन्न हुए। वहाँ पर किसी ब्याध ने उन्हें मार डाला। तदनन्तर वे गंगा नदी के तट पर हंस के रूप में उत्पन्न हुए।
हंस का आयुष्य पूरा कर वे दोनों वाराणसी नामक नगरी में भूदत्त नामक चाण्डाल के घर में पैदा हुए। एक का नाम चित्त और दूसरे का नाम संभूति रखा गया।
मन्त्री नमुचि
उस समय वाराणसी में शंख नामक राजा राज्य करता था। उसके नमुचि नामक एक मंत्री था। उस मंत्री ने एक बार उस राजा की रानी के साथ विषय-सेवन किया। राजा को पता लगा। राजा ने भूदत्त चाण्डाल को बुलाया तथा नमुचि को किसी गुप्त स्थान में ले जाकर मारने का आदेश दिया। भूदत्त नमुचि को अपने घर ले गया। भूदत्त जानता था, नमुचि एक पंडित और विज्ञ व्यक्ति है। उसका अपने लिए कोई अच्छा उपयोग क्यों न लिया जाए ! भूदत्त ने नमुचि से कहा- “यदि तुम मेरे इन पुत्रों को विद्या पढ़ा दो तो मैं तुम्हें नहीं मारूंगा।" मंत्री ने यह स्वीकार कर लिया। भूदत्त ने उसे अपने यहाँ गुप्त रूप में रख लिया। राजा को असत्य सूचना दे दी कि नमुचि का वध कर दिया गया है।
नमुचि भूदत्त के दोनों पुत्रों को विद्या पढ़ाने लगा। वह व्यभिचारी था। वहाँ उसका भूदत्त की स्त्री के साथ अनुचित सम्बन्ध स्थापित हुआ। वह उसके साथ विषय-सेवन करने लगा। भूदत्त को जब यह ज्ञात हुआ, तब उसने उसके वध का निश्चय किया भूदत्त के पुत्रों ने नमुचि को अपना विद्या-गुरु जानकर वहाँ से भगा दिया।
नमुचि वहाँ से चलकर हस्तिनापुर नगर में गया। वहाँ वह सनत्कुमार चक्रवर्ती का प्रधान अमात्य बन गया।
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