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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चित्त और संभूत : चित्त-संभूत जातक ३७१ 5. चित्त और संभूत : चित्त-संभूत जातक उत्तराध्ययन सूत्र, तेरहवें अध्ययन, चूणि एवं वृत्ति में चित्त तथा संभूत या संभूति नामक दो भाइयों का कथानक है, जो चाण्डाल पुत्र थे। पूर्व भव में गोपालक, दासीपुत्र, मग एवं हस के रूप में साथ-साथ उत्पन्न हुए थे। उच्च कुलोत्पन्न लोगों द्वारा किये जाते तिस्स्कार से उद्वेलित होकर चित्त और संभूत ने श्रमण दीक्षा स्वीकार की। भोग-संपक्त निदान के कारण संभूत काम्पिल्यपुर के राजा ब्रह्मभूति के पुत्र रूप में उत्पन्न हुआ। वह आगे जाकर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती हुआ। चित्त पुरिमताल नगर में प्रमुख श्रेष्ठी के घर जन्मा, उसने मुनि-दीक्षा स्वीकार की। अवधि ज्ञानी हुआ। उसे अपने और अपने भाई के पूर्व-भव स्मरण थे। चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त को नाटक देखते अपना देव-भव स्मरण आया, जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। पिछले पांच भव तो उसने जाने, किन्तु छठे भव में भाई कहाँ है, वह नहीं जान पाया। युक्ति पूर्वक खोज की। दोनों भाइयों का मिलन हुआ। मुनि चित्त ने ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को धर्मोपदेश दिया। पिटक वाङ्मय के अन्तर्गत चित्त संभूत जातक में भी दो भाइयों की कहानी है। दोनों भाई इन्हीं नामों से अभिहित हैं। पूर्व भव में दोनों चाण्डालकुलोत्पन्न थे। अपमान से उत्पीड़ित होकर दोनों ने ऋषि-प्रव्रज्या स्वीकार की। आयुष्य-काल पूर्ण कर क्रमशः हरिणयोनि में तथा पक्षी-योनि में उत्पन्न हुए। तत्पश्चात् चित्त कोशाम्बी में राजपुरोहित के घर जन्मा। संभूत उत्तर पाञ्चाल के राजा के पुत्र-रूप में उत्पन्न हुआ। नामकरण के दिन दोनों को पूर्व-जन्मों की स्मृति हुई। संभूत क्रमशः भूलता गया। चित्त को दोनों के पिछले जन्म स्मरण रहे। चित्त ने ऋषि-प्रव्रज्या स्वीकार की। चाण्डाल के घर जन्म, कला एवं शिल्प नैपुण्य, उच्च कुलोत्पन्न लेगों द्वारा तिरस्कार, वैराग्य भोग प्रधान नृप-जीवन और त्याग प्रधान संन्यस्त जीवन का समकक्ष दिग्दर्शन, त्याग का वैशिष्ट्य आदि दोनों ही कथानकों में प्रायः समान धरातल पर उभरे हैं । दोनों में अद्भुत साम्य है। ___ जैन कथा के अन्तर्गत जहाँ एक श्लोक की उत्तरार्ध पाद-पूर्ति द्वारा दोनों भाइयों का मिलन होता है, वहाँ बौद्ध कथा में एक मंगलगीत की दो गाथाओं के गीत-प्रतिगीत के रूप में दोनों भाई मिलते हैं। जैन कथानक में जिस प्रकार चित्त, जो मुनि था, अपने पूर्व भव के भाई चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त को उपदेश देता है, बौद्ध कथानक में वैसे ही चित्त, जो ऋषिरूप में प्रव्रजित था, अपने पूर्व जन्म के भाई पाञ्चाल-नरेश को धर्म का मार्ग बतलाता है। कथानकों के स्वरूप में काफ़ी सादृश्य होने के साथ-साथ भवों के विस्तार में कुछ अन्तर है। जैसा उल्लेख हुआ है-जैन कथा के अनुसार विगत पाँच भवों में तथा बौद्ध कथा के अनुसार विगत तीन भवों में दोनों का साहचर्य रहा। भवों की क्रमिकता में भी अन्तर है । दो पृथक् परिप्रेक्ष्यों में पल्लवित वाङ्मय में ऐसा होना स्वाभाविक है। चित्त और संभूत श्रमण मुनिचन्द्र साकेतपुर नामक नगर था। वहाँ के राजा का नाम चन्द्रावतंसक था। राजा के पुत्र ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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