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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग-चित्त और संभूत : चित्त-संभूत जातक ३७३ संगीत-निष्णात चाण्डालकुमार
इधर वे दोनों चाण्डाल-कुमार-भूदत्त के पुत्र गान-विद्या में अत्यन्त निष्णात हो गये। उनके स्वर में, गान में अद्भुत मधुरता एवं कलात्मकता थी। वे नगर में जब गाते तो सुनने वाले उनके गान पर मुग्ध हो जाते। जहाँ भी वे गाते, लोग अपना काम-धन्धा छोड़कर उनके पास एकत्र हो जाते तथा उनका गाना बड़ी रुचि के साथ सुनते। इससे लोगों के दैनन्दिन कार्यों में बड़ी बाधा होने लगी। नगर के कतिपय प्रधान पुरुषों ने राजा के यहाँ उनके विरुद्ध शिकायत की। राजा ने उन दोनों को नगर से बाहर चले जाने का आदेश दया ।
निराशा : प्रव्रज्या
उन दोनों चाण्डाल-कुमारों को इससे बड़ा अपमान अनुभव हुआ। उन्होंने ऐसे जीवन से मरना कहीं अधिक प्रियकर समझा । वे दोनों आत्महत्या करने को तैयार हुए। दोनों एक पर्वत पर से गिरकर मरना चाहते थे, इतने में एक साधु के दर्शन हुए। साधु ने दोनों को धर्मोपदेश दिया। उनका मानस बदल गया। उन्होंने प्रव्रज्या स्वीकार कर ली।
प्रवजित होकर दोनों भाई अच्छी तरह संयम का पालन करने लगे, घोर तप करने लगे।
किसी समय दोनों मुनि हस्तिनापुर आये । नमुचि वहां सनत्कुमार चक्रवर्ती के प्रधान अमात्य के रूप में था ही। नमुचि ने उन दोनों भाइयों को पहचान लिया। उसका दूषित चरित्र कहीं प्रकट न हो जाए, इस चिन्ता से उसने उन दोनों को नगर से बाहर निकलवा दिया।
तेजोलेश्या का प्रक्षेप
नमुचि के इस नीच व्यवहार से वे दोनों मुनि बहुत खिन्न हुए। उन्होंने नगर के बाहर रहते हुए उग्र तपस्या की। उनको तेजोलेश्या सिद्ध हुई । निष्कारण नगर से निकाले जाने का संभूति को बड़ा दुःख था। वह बहुत क्रोधित हुआ। उसने नगर पर तेजोलेश्या छोड़ना प्रारम्भ किया। पहले उसके मुंह से प्रचण्डधूम निकलना आरम्भ हुआ। चित्त ने उसे बहुत समझाया, पर वह नहीं माना । तब चित्त ने उसके मुंह पर हाथ रख दिया । उससे अग्नि तो रुक गई, किन्तु समग्र नगर में धूआँ ही धूआँ हो गया। मोग-संपृक्त निदान
सनत्कुमार चक्रवर्ती ने जब यह देखा, वह बहुत भयभीत हुआ, घबराया। श्रीदेवी नामक अपनी रानी को साथ लिए वह नगर के बाहर आया। मुनियों को वन्दन-नमन किया जो अनुचित हुआ उसके लिए क्षमा-याचना की । उस समय जब रानी श्रीदेवी संभूति मुनि को नमस्कार कर रही थी, उसके केशों में लगे हुए गोशीर्ष चन्दन के अत्यन्त सुरभित तेल की एक बूंद संभूति मुनि के चरणों पर गिर पड़ी। संभूति मुनि का क्रोध शान्त हो गया। वह अपने नेत्र खोलकर रानी को निहारने लगा। उसके रूप-लावण्य देखकर वह उस पर मुग्ध हो गया। उस समय संभूति मुनि ने यह निदान किया कि यदि उसके घोर तप तथा संयम का फल हो तो वह मरकर ऐसा चक्रवर्ती राजा बने, इस प्रकार की परम रूपवती
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