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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड:३ भेरी द्वारा सांकेतिक परीक्षा
एक दिन का प्रसंग है, भेरी राजभवन में भोजन कर वापस जा रही थी। उसने बोधिसत्त्व को राजभवन के प्रांगण में देखा, वह राजा की सन्निधि में जा रहा था। वह खड़ी हुई । उसे अभिवादन किया। वह मन में यह सोचे थी, यह पण्डित है, प्रज्ञावान् है, मैं इसे परीक्षित कर देखू, वास्तव में यह पण्डित है, अथवा अपण्डित है ? उसने मुख से न बोलकर हस्त-मुद्रा से प्रश्न पूछने का उपक्रम किया। बोधिसत्त्व को देखकर उसने अपना हाथ फैलाया। उसका आशय यह था कि पण्डित ! राजा ने तुमको दूर देश से बुलवा लिया है, वह अब तुम्हारा यथोचित सेवा-सत्कार करता है या नहीं करता।।
बोधिसत्त्व ने परिवाजिका का आशय समझ लिया। उसने अपने मुख से कुछ न बोलते हुए हस्त-संकेत द्वारा ही उसे उत्तर देना उचित समझा । उसने अपने हाथ की मुठी बन्द कर ली जिसका आशय था-राजा ने मुझसे वचन लिया, वायदा करवाया, मुझे बुलाया, मैं आया, पर उसने अब अपनी मुट्ठी बन्द कर ली है। वह अब मुझे विशेष उपहार, पुरस्कार नहीं देता।
परिव्राजिका उसका अभिप्राय समझ गई । उसने अपना हाथ उठाया, अपने मस्तक पर रखा। उसका तात्पर्य यह था कि पण्डित ! यदि तुम दुःखित हो, कष्ट अनुभव होता है तो मेरी तरह प्रव्रज्या क्यों नहीं स्वीकार कर लेते ?
बोधिसत्त्व परिव्राजिका के संकेत का भाव समझ गया। उसने उत्तर में अपने हाथ से उदर को छुआ, जिसका अभिप्राय था—आर्ये ! मैं एकाकी नहीं हूँ। मुझे कइयों का लालनपालन करना पड़ता है। इसी कारण मैं प्रव्रज्या नहीं ले सकता।
भेरी परिवाजि का यों हस्त-संकेतों द्वारा प्रश्न पूछकर, बोधिसत्त्व से हस्त संकेतों द्वारा ही उत्तर पाकर अपने स्थान की ओर चल पड़ी। बोधिसत्त्व भी उसे प्रणाम कर राजा के यहाँ चला गया।
मिथ्या आरोप
महारानी नन्दा देवी द्वारा महौषध पर आरोप, आक्षेप लगाने हेतु नियुक्त उन पांचों स्त्रियों ने, जो इस फिराक में घूम रही थीं, भेरी परिव्राजिका और महौषध पण्डित को हस्तसंकेतों द्वारा विचारों का आदान-प्रदान करते देखा। वे राजा के मुंह लगी थी ही, पास गई और उससे शिकायत की-"राजन् ! महौषध पण्डित भेरी परिवाजिका के साथ गठबन्धन कर, षड्यन्त्र कर तुम्हारा राज्य हथियाना चाहता है। उसके मन में तुम्हारे प्रति शत्रुभाव है।"
राजा ने उन स्त्रियों से कहा-"तुम यह बतलाओ, तुमने वैसा क्या देखा, जिसके आधार पर यह बोल रही हो।"
स्त्रियां बोलीं- "राजन् ! भेरी परिव्राजिका भोजन कर वापस लौट रही थी। उसने महौषध पण्डित को देखा। उसे देखकर उसने अपना हाथ फैलाया। इस संकेत का यह तात्पर्य था कि राजा को हथेली की ज्यों या अनाज निकालने-भूसे से दानों को पृथक् करने के खलिहान की ज्यों बराबर करके, साफ करके क्या तुम उसका राज्य स्वायत्त नहीं कर सकते ? महौषध ने इसका उत्तर तलवार की मूठ पकड़ने की ज्यों अपनी मुट्ठी बांधकर दिया। उसका भाव यह था कि कुछ दिनों के अनन्तर मैं तलवार द्वारा उसे काट डालूंगा, मार
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