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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ૨૪૨
आग में पकाओगे, जलाओगे तो विदेहराज तुम्हारी माता को लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकायेगा, जलायेगा । यदि तुम मुझे - मेरी चमड़ी उतार कर उसे बैल के चर्भ तथा सिंह या बाघ के चर्म की ज्यों फैलाओगे, उसे तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा बिधवाओगे तो विदेहराज उसी तरह तुम्हारे पुत्र पाञ्चालचण्ड को बिधवायेगा । यदि तुम मुझे बैल के चर्म तथा सिंह या बाघ के चर्म की ज्यों फैलाकर तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा बिधवाओगे तो विदेहराज तुम्हारी पुत्री पाञ्चालचण्डी को उसी प्रकार बिधवायेगा । मुझे बैल के चर्म तथा सिंह या बाघ के चर्म की ज्यों फैलाकर तीक्ष्ण शस्त्र द्वारा बिघवाओगे तो विदेहराज तुम्हारी पटरानी को तथा माता को उसी प्रकार बिधवायेगा ।
"महाराज ! मैंने तथा विदेहराज ने मन्त्रणा कर -- परामर्श कर ऐसा निश्चय किया है । चर्म के करीगरों द्वारा कमाया हुआ एक बालिश्त प्रमाण वर्म जिस प्रकार बाणों को प्रतिहत कर - रोक कर योद्धा के शरीर की रक्षा करता है, उसी प्रकार मैं भी कीर्तिमान् विदेहराज का त्राण करने वाला हूँ, उसके लिए सुख जुटाने वाला हूँ, उसके संकट दूर करने बाला हूँ । जिस प्रकार कमाया हुआ बालिश्त प्रमाण चर्म - चमड़े का टुकड़ा बाणों को प्रतिहत — अवरुद्ध कर देता है, उसी प्रकार राजन् ! मैं तुम्हारी बुद्धि को प्रतिहत करने की - अवरुद्ध -- गतिशून्य कर देने की क्षमता लिये हैं । ""
१. स चे मे हत्थे च पादे च कण्णनासं च छेच्छसि । एवं पञ्चाल चण्डस्स वेदेहो छेदयिस्सति ॥ २२६ ॥ च कण्णनासं च छेच्छसि ।
स चे मे हत्थे च पादे एवं नन्दाय देविया सचे मे हत्थे च पादे एवं ते पुत्तदारस्स स चे मंसं व पाचब्बं एवं पञ्चालचण्डस्स
स चे मे हत्थे च पादे एवं पञ्चालचण्डिया वेदेहो छेदविस्सति ॥ २३० ॥ च कण्णनासं च छेच्छसि । बेहो छेदयिस्सति ।। २३१ ॥ च कण्णनासञ्च छेच्छसि । वेदेहो
छेदयिस्सति ॥ २३२ ॥ पचिस्सति ।
सूले कत्वा वेदेहो
स चे मंसं व पाचब्वं सूले कत्वा एवं पञ्चालचण्डिया
वेदेहो सचे मंसं व पाचब्बं सूले एवं नन्दाय देविया सचे मंसं व पाचब्बं सूले एवं ते
स चे मं वितनित्वान वेधस्सिति सत्तिया ।
पाचयिस्सति ॥ २३३ ॥ पचिस्सति ।
पाचयिस्सति ॥ २३४॥ कत्वा पचिस्सति ।
वेदेहो पाचयिस्सति ॥ २३५ ॥ कत्वा पचिस्सति । पुत्तदारस्स वेदेो पाचयिस्सति ॥ २३६ ॥
एवं पञ्चालचण्डस्स विदेहो वेधस्सिति ॥ २३७ ॥
स
चे मं वितनित्वान वेध यिस्सति सत्तिया ।
एवं
पाञ्चालचण्डिया विदेह वेधस्सिति ॥ २३८ ॥ चेमे वितनित्वान वेधस्सिति सत्तिया । एवं नन्दाय देविया विदेहो वेधस्सिति ॥ २३६ ॥
स
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