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________________ ३४८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ उसी प्रकार उसे तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकाओ, जलाओ। जिस प्रकार बैल का चमड़ा उतार कर जमीन पर फैलाया जाता है, सिंह और बाघ का चमड़ा उतार कर जैसे शंकुओ-खूटियों के साथ बांधा दिया जाता है, जिसने हमारे हाथ आये शत्रु विदेहराज को भगा दिया, उसके शरीर की चमड़ी उतार कर उसे बैल के चर्म की ज्यों पृथ्वी पर फैला दो, सिंह और बाघ के चर्म की ज्यों क्रमशः पृथ्वी पर फैलाकर, शंकुओं में बांधकर शक्ति सेशस्त्र-विशेष द्वारा बेधित करो।"१ सार्थक प्रतिवचन ब्रह्मदत्त का कथन सुनकर महौषध धीमे से मुसकराया। उसने मन-ही-मन कहा, यह उन्मत्त राजा नहीं जानता कि मैंने इसकी पटरानी, माता, पुत्र तथा पुत्री को विदेहराज के साथ मिथिला भेज दिया है। यही कारण है, यह मुझे सजा देने की बात सोच रहा है। यह क्रोध से पागल है । मुझे तीक्ष्णाग्र शस्त्र से बिधवा सकता है और भी यह जैसा चाहे, मेरे साथ करवा सकता है। मुझे इस विषाद-विह्वल राजा को और व्यथित करना है, इसे घोर दुःख अनुभव कराना है। अब मैं इससे ऐसी बात कहूँगा, जिससे यह हाथी की पीठ पर बैठा-बैठा मूच्छित हो जाए। यह सोचकर महौषध ने उसे उद्दिष्ट कर कहा-"पाञ्चाल राज सुन लोयदि तुम मेरे हाथ-पैर, नाक-कान कटवाओगे तो विदेहराज तुम्हारे पुत्र पाञ्चालचण्ड के हाथ-पैर कटवा देगा, नाक-कान कटवा देगा । यदि तुम मेरे हाथ-पैर कटवाओगे, नाक-कान कटवाओगे तो विदेहराज तुम्हारी पुत्री पाञ्चालचण्डी के हाथ-पैर, नाक-कान कटवा देगा। यदि तम मेरे हाथ-पैर कटवाओगे, नाक-कान कटवाओगे तो विदेहराज तम्हारी पटरानी नन्दादेवी के हाथ-पैर कटवा देगा, नाक-कान कटवा देगा । यदि तुम मेरे हाथ-पैर कटवाओगे, नाक-कान कटवाओगे तो विदेहराज तम्हारी माता त लतालदेवी के हाथ-पैर कटवा देगा, नाक-कान कटवा देगा। यदि तुम मांस पकाने कीज्यों मुझे लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकाओगे, जलाओगे तो विदेहराज उसी तरह तुम्हारे पुत्र पाञ्चालचण्ड को लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकायेगा, जलायेगा । यदि तुम मांस पकाने की ज्यों मुझे लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकाओगे, जलाओगे, तो विदेहराज तुम्हारी पुत्री पाञ्चालचण्डी को लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकायेगा, जलायेगा । यदि तुम मांस पकाने की ज्यों लोहे की तीखी सलाख में मुझे पिरोकर आग में पकाओगे, जलाओगे तो विदेहराज तुम्हारी पटरानी नन्दादेवी को लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर आग में पकायेगा, जलायेगा। यदि तुम मांस पकाने की ज्यों मुझे लोहे की तीखी सलाख में पिरोकर १. इमस्स हत्थपादे च कण्णनासं च छिन्थ । यो मे अमित्तं हत्थगतं वेदेहं परिमोचयि ॥ २२६ ॥..... इमं मंसंब्ब पाचब्बं सूले कत्वा पचन्तु तं । ............. यो मे अमित्तं हत्थगतं वेदेहं . परिमोचयि ॥ २२७ ।। ....... यथापि आसमं चम्मं पथव्या वित निय्यति, ... .... ........ सीहस्स अथो व्यग्धस्स हति संकासमाहत। .................. एवं वितनित्वान वेधयिस्सामः . सत्तिया। ..........। यो में अमित्तं हत्थगतं वेदेहं परिमोचयि ।। २.२८ ।। . . . . . . . . . . . . . ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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