SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३४४ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ आगे के लिए अश्रान्त, स्वस्थ वाहन दिये । वे चल पड़े। वे ज्यों-ज्यों आगे चलते रहे, बीचबीच में वाहन बदलते रहे । उनको उत्तरोत्तर अभिनव, स्फूर्त वाहन प्राप्त होते गये । उनके चलने की त्वरा में व्यवधान नहीं आया । इस प्रकार एक सौ योजन लम्बा मार्ग पार कर वे सकुशल मिथिला पहुँचे । उधर महौषध सुरंग के दरवाजे पर गया। कमर में बंधी तलवार खोली । सुरंग से निकला । किसी के पैरों के निशान दिखाई न दे सकें, एतदर्थ सुरंग के दरवाजे पर बालू बिखेर दी। आवास नगर में पहुँचा, सुरभित जल से स्नान किया, विविध प्रकार के उत्तम, स्वादिष्ट खाद्य, पेय पदार्थ भोजन में ग्रहण किये । भोजन कर बिछौने पर लेटा, सन्तोष की सांस ली कि मेरी मनः कल्पना आज पूर्ण हो गई । ब्रह्मदत्त का क्षोभ रात व्यतीत हो चुकी थी । समग्र रात्रि - पर्यन्त चूळनी ब्रह्मदत्त पहरा देता रहा था । उसने अपनी सेना को जागरूक किया। सूर्योदय हुआ । राजा ब्रह्मदत्त ससैन्य विदेहराज के आवास- नगर के निकट आया । वह उत्तम, बलिष्ठ षष्टिवर्षीय गजराज पर आरूढ था, अत्यन्त बलशाली था, मणियों से जड़ा कवच धारण किये था, हाथ में बाण लिये था, युद्धार्थ तत्पर था। उसके पास अश्वारूढ, गजारूढ, रथारूढ तथा पदाति योद्धा थे जो धनुर्विद्या में प्रवीण थे । वे इतने अच्छे निशानेबाज थे कि बाल तक बींध डालने में सक्षम थे । ' राजा ने अपने सैनिकों और योद्धाओं को आदेश देते हुए कहा--"लम्बे-लम्बे दांत युक्त, शक्तिशाली, षष्टिवर्षीय हाथियों को खुला छोड़ दो ताकि वे विदेहराज के लिए निर्मित आवास-नगर वो मर्दित कर डालें, कुचल डालें, तहस-नहम कर डालें । बछड़े के दाँतों जैसे सफेद, तीक्ष्ण नोक युक्त, हड्डियों को भी वेध सकने में समर्थ बाण धनुष से वेग पूर्वक छोड़ो । हाथों में ढालें लिये, विविध प्रकार के आयुधों से सुसज्जित होते हुए तुम लोग युद्ध में कूद पड़ो । हाथियों के आगे हो जाओ, उन्हें सम्भालो । तैल-धौत - तैल से धोई हुई, साफ की हुई अस्मिती - दीप्तियुक्त, प्रभास्कर चमकती हुई शक्तियाँ शस्त्रविशेष आकाश के तारों की ज्यों देदीप्यमान हों, चलाई जाएं, शस्त्रास्त्रयुक्त, सुदृढ़ कबचों से सन्नद्ध, संग्राम में कभी पीठ नहीं दिखाने वाले योद्धाओं से बचकर विदेहराज पक्षी की ज्यों आकाश में उड़ कर भी त्राण नहीं पा सकता। मेरे पास उनतालीस सहस्र छंटे हुए योद्धा हैं, जिनके सदृश सारा भूमण्डल छान लेने पर भी दूसरे नहीं मिलते | यहाँ बड़े-बड़े दाँतों वाले साठ-साठ वर्ष के परिपक्व हाथी हैं, जिनके कन्धों पर चारू - दर्शन - सुन्दर दीखने वाले राजकुमार शोभा पाते हैं | पीले वस्त्र पहने पीले, दुपट्टे धारण किये, पीले वर्ण के आभूषणों से सुसज्जित वे राजकुमार १. रक्खित्वा कसिणं रत्तिं चूळनीयो महब्बलो । उदन्तं अरुणुग्गहि उपकारि उपागम ||२०१ ।। आरूय्ह पवरं नागं बलवन्तं सट्ठिहायनं । राजा अवोच पञ्चालो चूळनीयो महब्बलो ॥ २०२ ॥ सन्नद्धो मणिवम्मेन सरमादाय पाणिना । पेस्सिये अज्भभासित्थ पुथुगम्बे समागते । २०३ || हत्थारूढ़े अनीकट्ठे रथिके पत्तिकारके । उपासनम्हि कत हत्थे बाळवेघे समागते ॥२०४॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy