________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३४१
सेनक आगे हुआ। विदेहराज को उसके पीछे किया। महौषध खुद विदेहराज के पीछे हुआ । सुरंग बहुत सजी हुई थी, अत्यन्त शोभित थी। महोषध को आशंका थी कि विदेहराज इसकी सज्जा, शोमा देखने में तन्मय न हो जाए, विलम्ब न करने लगे; इसलिए उसने उसको सेनक के और अपने दोनों के बीच में रखा। सुरंग में खाद्य-पदार्थों एवं पेयपदार्थों की समीचीन व्यवस्था थी। सब खाते-पीते आगे बढ़े।
सेनक आगे-आगे चलता जाता था और महौषध पीछे-पीछे । विदेहराज आगे-पीछे अपने दोनों अमात्यों-मन्त्रणाकारों-पण्डितों से समायुक्त उनके बीच में चलता जाता था।
उन्होंने सुरंग को पार किया। ब्रह्मदत्त के परिपार पर पहरा देने वाले महौषध के योद्धाओं को जब मालम पडा कि विदेहराज सहित महौषध सरंग के पार पहुँच वे ब्रह्मदत्त की माता, पटरानी, पुत्र तथा पुत्री को लेकर सुरंग-संयुक्त उच्च भवन में चलेगये। महौषध तथा विदेहराज वहाँ पहुँच ही गये थे । ब्रह्मदत्त की माता आदि ने जब वहाँ महौषध पण्डित एवं विदेहराज को देखा तो उनको यह समझते दरे नहीं लगी कि निश्चय ही वे दूसरों के हाथों में पड़ गये हैं । जो उन्हें यहाँ लेकर आये हैं, वे महौषध पण्डित के ही आदमी होने चाहिएं। उनकी आंखों के आगे मौत की काली छाया नाचने लगी। उन्होंने जोर-जोर से चीखना-चिल्लाना शुरू किया।
चळनी ब्रह्मदत्त इस चिन्ता में था, सावधान था कि विदेहराज कहीं हाथ से निकल न जाए; इसलिए वह विदेहराज के आवास-नगर को सेना सहित घरे पड़ा था। रात्रि प्रशान्त थी। अपने पारिवारिक जन की चीख की आवाज अकस्मात् उसके कानों में पड़ी। उसके मन में आया, वह कहे-यह तो महारानी नन्दादेवी का स्वर है, किन्तु, यह सोचकर वह बोल नहीं सका कि उसे ऐसा कहते सुनकर लोग उसका कहीं परिहास न करने लग कि यह तो यहाँ भी नन्दादेवी को ही देख रहा है, उसी को मन में बसाये है। साथ-ही-साथ उसने मन को कल्पित समाधान भी दे दिया कि यह उसका निरा भ्रम है, यहाँ उनकी आवाज कहाँ से आए।
पांचाल चण्डी का अभिषेक
बोधिसत्त्व ने राजकुमारी पाञ्चालचण्डी को वहां रत्न-राशि पर बिठाया, विदेहराज की पट्टमहिषी-पटरानी के रूप में उसका अभिषेक किया और कहा-"राजन् ! तुम इसी के उद्देश्य से यहाँ आये हो। इसे अपनी पटरानी के रूप में स्वीकारो।" तीन सौ नौकाएँ, जो पहले से तैयार थीं, वहाँ लाई गईं। विदेहराज एक सुसज्जित, सुशोभित नौका पर चढ़ा, चारों पण्डित चढे, राज माता तलतालदेवी, पटरानी नन्दादेवी, राजपुत्र पाञ्चालचण्ड तथा राजपूत्री पाञ्चालचण्डी को भी नौकारूढ कराया।.. ..
महौषध पण्डित ने विदेहराज को उपदिष्ट करते हुए कहा-"राजन् ! पाञ्चालचण्ड राजा ब्रह्मदत्त का पुत्र है। अपने पिता का प्रतिनिधि होने के नाते एक प्रकार से यह तुम्हारा श्वसुर है--श्वसुर स्थानीय है। नन्दा देवी तुम्हारी सास है। जैसा सम्मानपूर्ण विनयपूर्ण बर्ताव मां के साथ किया जाता है, वैसा तुम इसके साथ करना। राजमाता
१. पुरतो सेनको वाति पच्छतो च महोषधो।
मज्झे च राजा वेदेहो अमच्चपरिवारितो।। १८६ ॥
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org