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तश्व : आचार : कथानुयोग
कथानुयोग — चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३३३
महौषध विदेहराज के पास गया तथा एक ओर खड़ा हो गया। राजा कामलिप्सा से अभिभूत था । वह राजकुमारी की प्रतीक्षा में था। राजा ब्रह्मदत्त राजकुमारी का भेज रहा होगा, यह सोचकर अपने पलंग से उठा, देखने हेतु गवाक्ष के समीप पहुँचा। वहाँ खड़ा हो गया । उसने देखा, लाखों मशालें लिये सैनिक खड़े हैं । मशालों की रोशनी से नगर आलोकमय हो रहा है । विशाल सेना ने नगर पर घेरा डाल रखा है। उसके मन में संशय उत्पन्न हुआ । उसने पण्डितों से परामर्श करने की भावना लिये कहा - "हाथियों, घोड़ों, रथों तथा पदातियों से युक्त सेना, जिसके सभी सैनिक कवच धारण किये हुए हैं, यहाँ अवस्थित है । मशालें जल रही हैं, चमक रही हैं, पण्डितो ! यह क्या स्थिति है ? तुम लोगों को कैसा लगता है ?""
यह सुनकर सेनक पण्डित ने कहा - " राजन् ! चिन्ता न करें, यह जो बहुत-सी मशालें दृष्टिगोचर हो रही हैं, उनसे प्रतीत होता है, राजा चूळनी ब्रह्मदत्त तुम्हें अर्पित करने हेतु अपनी कन्या लिये आ रहा है ।"
पुक्कुस ने ऐसा ही कहा- 'मालूम पड़ता है, तुम्हारे सम्मानार्थ राजा ब्रह्मदत्त सेना लिए खड़ा है ।"
इसी प्रकार जिसकी कल्पना में जैसा आया, वैसा ही उन्होंने राजा को बतलाया । राजा ने विशेष गौर किया तो उसे प्रतीत हुआ, बाहर से आदेशपूर्ण आवाजें आ रही हैं, कहा जा रहा है— अमुक स्थान पर सैनिक रहें, अमुक स्थान पर प्रहरी रहें, सब सावधान रहें – इत्यादि । राजा ने कुछ और ध्यान से देखा तो उसे ज्ञात हुआ, सभी सैनिक कवच- सज्जित हैं, युद्धोद्यत दिखाई देते हैं । राजा मन-ही-मन बहुत भयभीत हो गया । उसने महौषध का अभिमत जानने हेतु कहा – “हाथियों, घोड़ों, रथों तथा पदातियों से युक्त सेना, जिसके सभी सैनिक कवच धारण किये हुए हैं, यहाँ अवस्थित है । मशालें जल रही हैं, चमक रही हैं । पण्डित ! यह क्या स्थिति है ? तुम्हारा क्या अभिमत है ?" "
विदेहराज की भत्सना
बोधिसत्त्व ने विचार किया, इस अन्धे बेवकूफ को पहले कुछ डराऊ, तत्पश्चात् अपनी शक्ति से इसे आश्वस्त करूं । उसने कहा- "राजन् ! महाबलशाली राजा चूळनी ब्रह्मदत्त ने तुम्हें घेर लिया है । प्रदुष्ट - अत्यन्त दुष्ट, क्रूर ब्रह्मदत्त सवेरे तुम्हारी हत्या करेगा ।"
ज्योंही यह सुना, विदेहराज मृत्यु की कल्पना मात्र से घबरा गया । उसका गला सुख गया । मुख से लारें टपकने लगीं। शरीर दग्ध हो उठा। रोता-पीटता बोला- - "मेरा हृदय काँप रहा है । मुख सूख जला हुआ, झुलसा हुआ मनुष्य आतप में, धूप में जैसे
१. हत्थी अस्सा रथा पत्ती सेना तिट्ठन्ति वम्मिता । उक्का पदित्ता भायन्ति किन्नु मञ्जन्ति पण्डिता ॥ १४०॥ २. हत्थी अस्सा रथा पत्ती सेना तिट्ठन्ति वम्मिता । उक्का पदित्ता भायन्ति किन्नु कान्ति पण्डिता ॥ १४१ ॥ ३, रक्खति तं महाराज ! चूळनीयो महाब्बलो । पट्टी ते ब्रह्मदत्तो पातो तं घातयिस्सति ॥ १४२ ॥
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वह अत्यन्त व्याकुल हो गया । रहा है । अग्निदग्ध - आग से निर्वृति - शान्ति नहीं पाता,
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