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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
अपहरण
चूळनी ब्रह्मदत्त अपनी अठारह अक्षोहिणी सेना के साथ युद्धार्थ तत्पर था। उसने नगर की व्यूहात्मक घेराबन्दी करवा दी। महौषध को यह सब ज्ञात हो गया । उसने अपने तीन सौ योद्धाओ को कहा- "तुम छोटी सुरंग द्वारा जाओ। राजा ब्रह्मदत्त की माता, पटरानी, पुत्र और पुत्री को सुरंग द्वारा ही ले आओ। जब तक हम न आएं, उन्हें बाहर मत निकालना, सुरंग के द्वार या भीतर निर्मित विशाल तल में बिठाये रखना।"
योद्धाओं ने महौषध का आदेश शिरोधार्य किया। वे सुरंग द्वारा गये। सीढ़ियों के नीचे की ओर लगाए गये तख्ते को निकाला। राजमहल में प्रविष्ट हुए। पहरेदारों, अन्तःपुर के सेवकों, कुब्जों तथा अन्य लोगों के हाथ-पैर बांध दिये, उनके मुंह में कपड़े ठूस दिये और उन्हें जहाँ तहाँ ऐसे स्थानों में डाल दिया, जिससे उन पर आसानी से किसी की दष्टि न पड सके। फिर वे राजप्रासाद की भोजनशाला में गये। राजा के लिए तैयार किये गये स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों में से जितना खा सके, खाये, बाकी नष्ट-भ्रष्ट कर इधर-उधर बिखेर दिये। फिर अन्तःपुर में गये ।
राजमाता तलतालदेवी नगर के क्षोभपूर्ण, आतंकपूर्ण वातावरण से घबराई हुई थी। वह पटरानी नन्दादेवी, राजकुमार पाञ्चालचण्ड को तथा राजकुमारी पाञ्चालचण्डी को अपने पास एक ही बिस्तर पर लिटाये थी। महौषध के योद्धा उनके प्रकोष्ठ में गये। खड़े होकर उनको पुकारा। राजमाता शयनागार से निकलकर आई, बोली-"तात ! क्या कहते हो?"
योद्धाओं ने कहा-"देवी ! आपके पुत्र, हमारे राजा चूळनी ब्रह्मदत्त ने विदेहराज
महौषध का वध कर डाला है। अब वह समग्र जम्बूद्वीप का एकछत्र सम्राट हो गया और अपने अधीनस्थ सौ राजाओं के बीच बैठकर बड़ी शान-शौकत से विजयोपलक्ष्य में सुरापान करते हुए उसने हमें भेजा है कि आप चारों को हम ले आएं।" यह सुनकर राजमाता, राजमहिषी, राजकुमार तथा राजकुमारी उनके साथ चल पड़े। वे राजप्रासाद से उतरे । सीढ़ियों के नीचे गये। योद्धा उनको सुरंग में ले गये। उन्होंने कहा- "इतने समय से हम यहाँ हैं, यह रथ्या-गली तो हमने कभी नहीं देखी।" योद्धाओं ने कहा- "इसका नाम मंगल-रथ्या है। इससे सदा नहीं जाया जाता। आज मंगलमय दिवस है; अतः राजा ने हमें मंगल-रथ्या द्वारा आपको लाने का आदेश दिया है।" राजमाता आदि ने उन पर भरोसा कर लिया। वे आगे बढ़े। योद्धाओं में से कुछ राज-परिवार के उन चारों सदस्यों को साथ लिये आगे चलते गये। कुछ रुके, वापस मुड़कर राज-प्रासाद में आये। वहाँ का रत्न भण्डार खोला, जितने चाहे, उतने बहुमूल्य रत्न उन्होंने लिये और वापस लौट आये। छोटी सुरंग आगे बड़ी सुरंग में जाकर मिलती थी। बड़ी सुरंग देव. ताओ की सभा की तरह सुशोभित थी। राजमाता आदि ने उसे देखा तो मन-ही-मन यह सोचकर समाधान कर लिया कि यह राजा के लिए ही इस प्रकार सुसज्जित एवं विभूषित की गई होगी। महौषध के योद्धा आगे बढ़ते-बढ़ते गंगा महानदी के समीप पहुँच गये । सरंग के भीतर ही निमित, सुसज्जित, अलंकृत भवन में उनको बिठा दिया। कतिपय योद्धा वहाँ उनपर पहरा देने के लिए रुक गये, कतिपय महौषध पण्डित को सूचित करने चले गये। महौषध ने अपने योद्धाओं द्वारा दिया गया समाचार सुना । वह यह जानकर हर्षित हुआ कि उसकी योजनानुसार कार्य गतिशील है। उसने विचार किया, अब मेरा मन:संकल्प पूर्ण होगा।
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