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________________ ३२६ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ ब्रह्मदत्त बोला-"तात ! बहुत अच्छी बात है, तुम वैसा करवाओ। जैसा चाहोगे, अपेक्षित सामान की व्यवस्था करवा देंगे।" अपेक्षित वस्तुएं आ गई। महौषध ने कार्य शुरू करवाया। इससे सीढ़ियों के रास्ते से राजा तथा राजमहल के कर्मचारियों का आवागमन रुक गया। तब तक के लिए वे अन्य मार्ग से आने-जाने लगे। इससे महौषध का अपनी गोपनीयता बनाये रखने का अवसर मिल गया । महौषध ने, जहाँ सुरंग का दरवाजा बनाना था, वह स्थान निश्चित कर वहां से सीढ़ी हटवा दी, काठ का एक मजबूत तख्ता स्थापित करवा दिया, खूब स्थिरता से लगवा दिया। फिर सीढ़ी यथावत् करवा दी। यह निर्माण इस चातुर्य से करवाया कि जब सुरंग का उपयोग किया जाए तो काम आए। ___ महौषध का सारा कार्य योजनाबद्ध रूप में चल रहा था। राजा ब्रह्मदत्त यह नहीं जानता था। वह समझता था, मेरे प्रति प्रेम तथा आदर के कारण महौषध मेरा कार्य करवाने में रुचि लेता है। सीढ़ियों के सुधार, मरम्मत आदि का कार्य हो जाने पर महौषध ने राजा ब्रह्मदत्त से निवेदित किया-"देव ! यदि हमें यह अवगत हो जाए कि हमारा राजा किस स्थान पर रहेगा तो उस स्थान को हम सुधरवा लें, ठीक करवा लें।" पांचालराज-महौषध ! मेरे रहने के स्थान को छोड़कर तुमको नगर में जो भी स्थान सबसे उपयुक्त लगे, ले लो।" महौषध-"आपके अनेक कृपापात्र हैं, प्रियजन हैं, सामन्त हैं, उनमें से किन्हीं के स्थान अधिकृत किये जायेंगे तो वे हमारे साथ संघर्ष करेंगे । हम आपके मेहमान हैं । हमारा उनके साथ झगड़ना शोभनीय नहीं होता।" पांचालराज-"महौषध ! उनके संघर्ष की तुम चिन्ता मत करो। जो स्थान तुम्हें उपयुक्त लगे, ले लो।" महौषध-"राजन् ! वे बारबार आपके पास आकर शिकायत करेंगे । उनसे आपका चित्त अशान्त होगा। ऐसी असुविधा उत्पन्न न हो, इस दृष्टि से मेरा एक सुझाव है, यदि आपको उपयुक्त लगे तो ऐसा करें, जब तक हम किसी के घर अधिकृत करें, वहाँ अपने राजा के लिए नया आवास स्थान निर्माणित कराएं, तब तक आपके द्वार आदि पर हमारे आदमी प्रहरी के रूप में नियुक्त रहें। ऐसा करने से शिकायत करनेवाले आप तक पहुँच नहीं सकेंगे। वे उनको वहीं रोक देंगे। इससे आपके मन की शान्ति भग्न नहीं होगी।" ब्रह्मदत्त ने कहा-बहुत अच्छा, मैं यह व्यवस्था स्वीकार करता हूँ।" तदनुसार महौषध ने सीढ़ियों के नीचे, सीढ़ियों के ऊपर, मुख्य द्वार पर, सभी महत्त्वपूर्ण स्थानों पर अपने आदमी तैनात कर दिये और उन्हें आदेश दिया कि किसी को भी भीतर मत जाने दो। फिर महौषध ने अपने कार्य करों को कहा- "राजमाता का घर अधिकृत करने का, तोड़ने का स्वांग बनाओ।" अपने स्वामी की आज्ञानुसार वे राजमाता के घर पहुंचे। उन्होंने घर के दरवाजे और बरामदे को तोड़ना शुरू किया, ईंटें निकालने लगे, मिट्टी गिराने लगे। राजमाता को जब अपने सेवकों से यह मालूम हुआ, तो वहाँ आई और पूछा"मेरा भवन क्यों तोड़ रहे हो?" Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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