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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक
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आनन्दकुमार को आदेश देकर महौषध स्वयं गंगा के उस किनारे पर गया, जो नीचाई की ओर था। वहाँ से उसने कदमों से नापकर आधा योजन स्थान नियत किया, जहाँ उसकी बड़ी सुरंग बनाने की योजना थी। उसने निश्चय किया, विदेहराज के आवास हेतु यहाँ नगर का निर्माण होगा । राजप्रासाद पहुँचाने वाली दो कोश लम्बी सुरंग होगी । महौषध अपने चिन्तनगत कार्यों के सम्बन्ध में निर्णय लेकर उत्तर पाञ्चाल नगर में प्रविष्ट हुआ। जब चूळनी ब्रह्मदत्त को यह ज्ञात हुआ कि महौषध आ गया है तो वह बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने सोचा- अब मेरी मन:कामना पूर्ण होगी । मैं अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतरते देखूंगा । महौषध आ गया है तो निश्चय ही विदेहराज भी यहाँ शीघ्र पहुंचेगा । इन दोनों का यहाँ बड़ी आसानी से वध करवाकर मैं समग्र जम्बूद्वीप का एकछत्र राजा बनूंगा |
महौषध के आने के समाचार से समग्र नगर में एक हलचल सी मच गई। लोग आपस में बातें करते, यह वही महौषध पण्डित है, जिसने सौ राजाओं को, सेनाओं को अनायास ही इस प्रकार भगा दिया, जैसे एक कंकड़ द्वारा कौओं को भगा दिया जाता है । जब वह राजमार्ग से निकला तो नागरिक उसकी देह द्युति और सुन्दरता देखते रह गये । वह राजमहल के दरवाजे पर पहुँचा, रथ से नीचे उतरा। राजा को अपने आने की सूचना प्रेषित करवाई । राजा की ओर से स्वीकृति मिली कि वह भीतर आए। उसने राजमहल में प्रवेश किया, राजा के पास पहुँचा, राजा को नमस्कार कर एक ओर खड़ा हो गया ।
आवास भवन: गुप्त सुरंगें : कूट योजना
पाञ्चालराज ने उससे कुशल- समाचार पूछे और कहा - "तात ! विदेहराज कब पहुँचेगा ?"
महौषध -- "जब मैं यहाँ आने की सूचना प्रेषित करूंगा, तब वह यहाँ आयेगा ।" पाञ्चालराज- तुम पहले किस प्रयोजन से आये हो ?”
महौषध - "राजन् ! मैं विदेहराज के आवास के लिए भवन निर्माण करवाने
आया हूँ ।'
पाञ्चालराज - "
"बहुत अच्छा, जैसा चाहो, निर्माण करवा लो।" पांचालराज ब्रह्मदत्त ने सेना के आदर-सत्कार किया। उसके आवास के "तात ! जब तक विदेहराज यहाँ आएं, तुम साथ-साथ वह भी करते रहो, जो हमारे हित में हो ।'
व्यय हेतु राशि दिलवादी । महौषध का भी बड़ा लिए स्थान की व्यवस्था की । उससे कहा -- निश्चिन्त होकर रहो । तब तक अपने कार्य के
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राजमहल में जाते समय सीढ़ियों के नीचे महौषध ने मन-ही-मन यह तय किया कि
सोचा, राजा यह भी कह
यह स्थान गुप्त रूप से सुरंग के साथ संलग्न होना चाहिए। उसने रहा है, जो हमारे लिए हितकर कार्य हो, वह भी करते रहो। इससे लगता है, वह मेरे सुझाव मानेगा। अपनी योजना को अत्यन्त गुप्त रखने हेतु मैं चाहता हूँ कि सुरंग के खनन एवं निर्माण के समय राजा सीढ़ियों पर न आए। अतएव उसने बड़े चातुर्य के साथ राजा से कहा - "देव ! ज्योंही मैं यहाँ प्रविष्ट हुआ, सीढ़ियों के नीचे खड़े होकर मैंने गौर किया तो मुझे इनकी बनावट दोषपूर्ण लगी । यदि आपको मेरा कथन उचित प्रतीत हो और आप काठ आदि अपेक्षित वस्तुओं की व्यवस्था करवा दें तो मैं इनका दोष निकलवा दूं ।'
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