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३२० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ मुझे प्रसन्नता हुई । यदि तुम स्वीकार करो तो हम जीवन-साथी बनकर बन कर रहें।"
मैना को तोते की बात प्रिय लगी। वह मन-ही-मन हर्षित हुई, किन्त , अपने मन का भाव गोपित कर वह अनिच्छा व्यक्त करती हुई कहने लगी --"शुक शुकी की इच्छा करे, शालिक (पुरुष मैना) शालिका (स्त्री मैना) की कामना करे, यह तो स्वाभाविक है, समुचित है, किन्तु, शुक एवं मैना का सहवास कैसा रहे।"२
मैना का कथन सुनकर तोता समझ गया, यह मेरा प्रस्ताव अस्वीकार नहीं करती, केवल मिथ्या अनिच्छा प्रदर्शित करती है। यह निःसन्देह मुझे स्वीकार करेगी। मैं कतिपय उदाहरणों द्वारा इसे विश्वास में लूं । यह सोचकर उसने कहा-- "कामुक जिस किसी की कामना करता है, वह उसके लिए स्वीकार्य है, चाहे वह चाण्डालिनी हो। जहाँ कामना की तृप्ति है, वहाँ सभी समान हैं । काम-तृप्ति में कहीं असदृशता, असमानता नहीं होती।"3
तोता यह कहकर मनुष्यों में विभिन्न जातियों एवं कोटियों में स्त्री-पुरुषों के यौनसम्बन्ध की संगति बतलाते हुए बोला-“शिवि राजा की माता जम्बावती थी। वह जाति से चाण्डालिनी थी। वह कृष्णायन गोत्रीय वासुदेव की प्रिय पत्नी हुई-राजमहिषी हुई।"
इस प्रकार उस तोते ने मैना को बताया कि मनुष्यों में क्षत्रिय कुलोत्पन्न पुरुष ने चाण्डाल-कुलोत्पन्न स्त्री के साथ सहवास किया। हम पशु-पक्षियों की तो बात ही क्या। जहाँ मन रम जाए, परस्पर आकर्षण हो, वही निर्णायकता की कसौटी है। इतना ही नहीं, और भी सुनो-"रथावती नामक किन्नरी थी, जिसने वत्स नामक तपस्वी के साथ सहवास की इच्छा की। मनुष्य ने हरिणी के साथ सहवास किया। काम तुष्टि में कोई जातीय असमानता, अन्य प्रकार की असमानता बाधक नहीं होती।"५
___ तोते की बात सुनकर मैना ने कहा-"प्राणी का चित्त सदा एक समान नहीं रहतामुझे प्रियतम के विरह का बड़ा भय लगता है।"
तोता बड़ा मेधावी था। स्त्रियों को छलने में बड़ा चतुर था। उसने मैना के मन के परीक्षण हेतु फिर कहा-"मजुभाषिणी मैना ! अच्छा, मैं अब जाऊंगा। मैं समझता हूँ, तुम प्रत्याख्यान कर रही हो-मेरे प्रेम को ठुकरा रही हो । मैं तुम्हें अत्यधिक प्यार करता हूँ, यह समझकर तुम अति मान कर रही हो।"६
१. तस्स कामा हि सम्पत्तो आगतोस्मि तवान्तिके। ___ स चे करेय्यासि ओकासं उभयोव वसामसे ॥११५।। २. सुवो च सुर्वि कामेय्य साळिको पन साळिकं ।
सुवस्स साळिकाय च संवासो होति कीदिसो ॥११६।। ३. यं यं कामी कामयति अपि चण्डालिकामपि । ___ सब्बेहि सादिसो होत्ति नत्थि कामे असादिसो ॥११७॥ ४. अस्थि जम्बावती नाम माता सिब्बिस्स राजिनो। ___ सा भरिया वासुदेवस्स कण्हस्स महेसी सिया ॥११८।। ५. रथावती किम्पुरिसी सापि वच्छं अकामयि ।
मनुस्सो मिगिया सद्धि नत्थि कामे असादिसो ॥११६।। ६. हन्द खोह गभिस्सामि साकि के मञ्जुभाणिके । पच्चवखानु पदं हेतं अतिमञ सि नून मं ॥१२०॥
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