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________________ तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग – चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३१६ मैना का कथन सुनकर तोते ने विचार किया कि यदि मैं इससे यह कहूं कि मैं मिथिला से आया हूँ तो यह प्राण चले जाएँ तो भी भेद नहीं खोलेगी, मेरा भरोसा नहीं करेगी; इसलिए मैं इसे मनः कल्पित बात कहूं कि मैं शिवि राष्ट्र के अरिष्टपुर नामक नगर से आया हूँ, शिविराज द्वारा संप्रेषित हूँ । इस प्रकार मन-ही-मन मिथ्या कल्पना कर वह बोला – “मैं शिविराज के महल में उसके शयनागार में रहता था । वह राजा बड़ा धर्मनिष्ठ है। उसने मुझे बन्धन से मुक्त स्वतन्त्र कर दिया । "" यह सुनकर उस मैना ने अपने लिए स्वर्ण पात्र में रखी शहद मिली खील और मीठा पानी उसे दिया । मैना ने उससे पूछा - " मित्र ! तुम बहुत दूर से आये हो। तुम्हारे आने का क्या प्रयोजन है ?" तोता तो यहाँ एक अति गोपनीय रहस्य का पता लगाने आया था; अतः उसे वही करना था, जिससे उसका कार्य सिद्ध हो। उसने मिथ्या कल्पना कर उत्तर गढ़ा। वह बोला"मेरी बहुत प्रिय तथा मधुर बोलने वाली प्रेयसी - भार्या एक मैना थी । सुगृहे ! मेरे देखतेदेखते एक बाज ने उसका वध कर डाला ।" मैना ने उससे पूछा- - "बाज ने तुम्हारी भार्या का वध कैसे कर डाला ?” तोता बोला - " कल्याणि ! सुनो, एक दिन का प्रसंग है, हमारा राजा जल-विहार हेतु गया । उसने मुझे भी बुलाया । मैं भी अपनी भार्या को साथ लिये राजा के साथ गया । मैंने भी खूब जल क्रीडा की । सायंकाल राजा के साथ वापस लौटा । राजा के साथ ही हम महल में गये । हम दोनों का शरीर पानी से गीला था । शरीर को सुखाने के लिए हम महल के झरोखे से निकले, समीपवर्ती मीनार के रिक्त स्थान में बैठे। उसी समय एक ऐसा दुःसंयोग बना, एक बाज मीनार से हम पर झपटा। मृत्यु भय से त्रस्त मैं शीघ्र वहाँ से भागा। मेरी भार्या तब गाभिन थी । वह त्वरापूर्वक भाग न सकी । मेरे देखते-देखते उस बाज ने उसके प्राण ले लिये । वह उसे ले गया । मैं अत्यन्त दु:खित हुआ । शोक को नहीं सह सका । फूट-फूट कर रोने लगा । हमारे राजा ने यह देखा, मुझसे कहा - 'तुम क्यों रुदन कर रहे हो ? रोओ नहीं, कोई अन्य पत्नी खोज लो ।' मैंने उससे कहा – 'राजन् ! असदाचारिणी, शीलविरहिता पत्नी लाने से क्या होगा । वैसी सदाचारिणी, सुशीला पत्नी कहां मिलेगी । अब तो दुःख पूर्वक एकाकी विचरण ही श्रेयस्कर है। सु "तब राजा ने कहा- 'सौम्य ! मेरी दृष्टि में एक मैना है । वह सदाचारिणी है, शीला है। वह तेरी भार्या जैसी ही गुणवती है । वह राजा चूळनी ब्रह्मदत्त के शयनागार में निवास करती है । तुम वहाँ जाओ, उसकी मनोभावना जानो, उसे सहमत करो । यदि वह तुम्हें दृष्ट एवं मनोहर लगे तो हमें आकर कहो। मैं स्वयं या महारानी वहाँ जायेंगी, उस मैना को शान-शौकत के साथ ले आयेंगी ।' वह आगे बोला—“हमारे राजा ने मेरे मन में जो अभिलाषा उत्पन्न की, उससे १. अहोसि सिविराजस्स पासादे सयनपालको । ततो सोधम्मिको राजा बद्धे मोचेसि बन्धना ।। ११३ || २. तस मेका दुतियासि साळिका मञ्जुभाणिका । तं तत्थ अवधी सेनो पेक्खतो सुधरे मम ॥ ११४ ॥ Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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