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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ ही गरिमा बढ़ जाती है। ब्रह्मदत्त समझता है कि आपके अतिरिक्त समग्र जम्बू द्वीप के राजा उसके वशवर्ती हैं। केवल आप ही ऐसे हैं, जिन्हें वह अपने वशगत नहीं कर सका; अत: वह आपको अपने समान समझता है। इसीलिए वह जम्बूद्वीप में सर्वाधिक सुन्दर कन्या-अपनी पुत्री पाञ्चालचण्डी आपको समर्पित करना चाहता है। उसका प्रस्ताव स्वीकार करें। आपके कारण हमें भी उत्तम कपड़े, उत्तम गहने आदि पुरस्कार-स्वरूप प्राप्त हों।" राजा ने बाकी के तीनों पण्डितों से वही बात पूछी। उन्होंने भी वैसा ही जवाब दिया, जैसा सेनक ने दिया था। राजा का पण्डितों के साथ वार्तालाप चल ही रहा था कि इतने में ब्राह्मण केवट्ट जहाँ ठहरा था, उस स्थान से निकला। राजा की स्वीकृति प्राप्त कर उत्तर पाञ्चाल चला जाऊं,यह सोचकर वह राजा के पास आया और बोला.-"राजन् ! अब हमारा अधिक समय यहाँ रुकना संभव नहीं है, हम जाना चाहते हैं । कृपया अनुमति प्रदान करें।" राजा ने सत्कृत, सम्मानित कर उसे अपने साथियों के साथ विदा किया। महौषध को जब ज्ञात हुआ कि केवट्ट चला गया तो वह स्नान कर, उत्तम वस्त्रों तथा आभूषणों से विभूषित होकर राजा के पास आया । राजा को प्रणाम किया तथा एक ओर खड़ा हो गया । राजा मन-ही-मन विचारने लगा-महौषध पण्डित विचार-परामर्श में अत्यन्त निपुण है। वह अतीत, अनागत तथा वर्तमानगत घटनाओं को अपने प्रज्ञाबल द्वारा जानता है। वह यह भी जानता है कि हमारा पाञ्चाल नगर जाना उचित है अथवा नहीं। यद्यपि राजा का चिन्तन क्रम औचित्य लिए था, किन्तु, दुर्जय, दुःसह काम-राग में आसक्त होने के कारण, मोह में विमुग्ध होने कारण वह अपने प्रथम चिन्तन पर, संकल्प पर टिका नहीं रह सका । उसने महौषध से पूछा- "हम छः उत्तम प्रज्ञावान् पुरुषों का, पण्डितों का, ज्ञानी जनों का एक ही विचार है, मुझे चूळनी ब्रह्मदत्त की राजकुमारी पाञ्चालचण्डी को ब्याहने हेतु पाञ्चाल नगर जाना चाहिए। महौषध ! तुम भी अपना अभिमत कहो, वहाँ जाना उचित है या नहीं जाना—यहीं रहना उचित है।" महौषध की मन्त्रणा महौषध पण्डित ने राजा का कथन सुना, उस पर चिन्तन किया। उसे लगा. यह राजा कामुकता से अभिभूत है, कामान्ध है। यह उचित, अनुचित कुछ नहीं समझता है, मूर्ख है। इसी से के बट्ट का, चारों पण्डितों का कथन इसे ठीक लगता है । मैं वहां जाने का इसे अनौचित्य बतलाऊं और जाने से रोकू। यह सोचकर उसने कहा-'राजन् ! तुम जानते हो, पाञ्चाल-नरेश अत्यन्त प्रतापशाली है, अत्यन्त बलशाली है । जैसे एक आखेटक पालतू. हरिणी द्वारा हरिण को लुभाकर पकड़ता है, वह राजा कोई अपना विशेष प्रयोजन साधने हेतु आपको अपनी कन्या में आसक्त कर बुलाना चाहता है। जिस प्रकार माँस-गद्ध --मांसलुब्ध मत्स्य मांस से आच्छादित-प्रलिप्त कांटे को नहीं देखता, माँस को ही देखता है, फलतः मृत्यु को प्राप्त हो जाता है; उसी तरह हे राजन् ! तुम भी चळनी ब्रह्मदत्त की कन्या में १. छन्नं हि एकोव मती समेति, ये पण्डिता उत्तम भूरिपना। यानं अयानं अथवापि ठानं, महोसध ! त्वम्पि मतिं करोहि॥१८ ।। ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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