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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
हटवा दिये गये। उसने अपने परिचरों को समझा दिया कि जब ब्राह्मण केवट्ट मेरे साथ वार्तालाप करने का उपक्रम करे तो उससे कहना-ब्राह्मण ! आज महौषध पण्डित के साथ वार्तालाप मत करो। उसने आज विरेचन हेतु घृत-पान किया है। मैं भी जब बोलने के निमित्त मुंह खोलूं तो मुझे भी वैसा करने से रोकते हुए कहना कि आज आपने घृत-पान किया है, आप बोलें नहीं।
यह चिन्तन कर, तदनुरूप अपने सेवकों को विस्तार से समझा कर बोधिसत्त्व ने लाल रंग के कपड़े पहने । वह सातवें तल्ले पर रखी नीवार की चारपाई पर सो गया। केवट्ट आया। उसके घर के दरवाजे में खड़ा हुआ और पूछा-“महौषध पण्डित कहाँ है?"
महौषध के भृत्यों ने कहा- "ब्राह्मण उच्च स्वर से मत बोलो। यदि आना है तो बिना कुछ बोले आ जाओ। आज महौषध पण्डित ने विरेचन हेतु घृत-पान किया है। आवाज करना निषिद्ध है।" के वट्ट महौषध के घर में ज्यों-ज्यों आगे बढ़ा, सभी ओर से यही आवाज आई। वह सातवें तल पर महौषध पण्डित के पास पहुँचा। महौषध ने ज्योंही बोलने जैसा कुछ उपक्रम किया, उसके सेवकों ने उसे रोका --- ' स्वामिन् ! मुंह मत खोलिए। विरेचन हेतु तीव्र घत-पान किया है। इस दुष्ट ब्राह्मण से क्या वार्तालाप करना है। क्या सार्थक्य है ?" यों केवट्ट को महौषध के घर पहुँचने पर बैठने को स्थान तक न मिला और न खड़े रहने में कोई सहारा लेने का स्थान ही मिला। सर्वत्र गीला गोबर लिपा था, वह किसी तरह उस पर से जाकर खड़ा हुआ।
उसे खड़ा देखकर महौषध के आदमियों में से एक ने आंख मटकाई, एक ने त्यौरी ऊपर चढ़ाई तथा एक अपना मस्तक धुनने लगा। केवट्ट यह देखकर स्तब्ध रह गया। उसे समझ न पड़ा, यह क्या घटनाचक्र है। उसने कहा--"पण्डित ! मैं जा रहा है।"
___ यह सुनकर महौषध का एक सेवक बोला-"अरे दुष्ट ब्राह्मण! तुझे कहा था न, हल्ला मत कर। फिर तू कोलाहल करता है । मैं तेरी हड्डी-पसली तोड़ दूंगा।" केवट्ट डर गया, वह भौंचक्का-सा रह गया। इधर-उधर देखने लगा। इतने में एक भृत्य ने बांस का फट्टा केवट्ट की पीठ पर दे मारा। दूसरे ने उसको गर्दन पकड़ी और उसे धक्का मारा । तीसरे ने पीठ पर थपेड़ा लगाया। सिंह के मुख से छूटेहुए हरिन की ज्यों वह वहाँ से सत्वर निकल कर राज महल में पहुंचा।
राजा के मन में विचार आया, महौषध पाञ्चालराज के यहाँ से प्राप्त सन्देश सुनकर अवश्य हर्षित हुआ होगा। दोनों पण्डितों ने दिल खोलकर धर्म-चर्चा, ज्ञान-चर्चा की होगी। पिछले कटु व्यवहार के लिए एक-दूसरे से माफी मांगी होगी। यह मेरे लिए बड़ी खुशी की बात होगी। उसने ज्यों ही केवट्ट को आया देखा, उससे महौषध पण्डित के साथ हुई भेंट का समाचार जिज्ञासित करते हुए कहा-"केवट्ट ! बतलाओ, महौषध के साथ तुम्हारा समागम-सम्मिलन कैसा रहा ? क्या तुम दोनों ने परस्सर क्षमा याचना कर ली ? क्या महौषध इस मिलन से परितुष्ट हुआ ?''
१. कथन्नु केवट्ट ! महोसधेन, समागमो आसि तदिङ्घ ब्रूहि । कच्चि ते पटिनिझन्तो, कच्चि तुठ्ठो महोसधो ।। ६५॥
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