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आगम और त्रिपिटक :
[खण्ड
:३
ऐश्वर्य : लावण्य
राजा ब्रह्मदत्त ने कवियों को पुनः बुलाया। उनसे कहा- "कवियो ! अब तुम ऐसे गीत लिखो, जिनमें विदेहराज के ऐश्वर्य, प्रताप तथा राजकुमारी की रूप-सुषमा का वर्णन हो। गीतों में यह आए कि इस प्रकार की दिव्य लावण्यमयी राजकुमारी के लिए विदेहराज के सिवाय समग्र जम्बूद्वीप में और कोई योग्य पात्र, वरणीय नहीं है।" राजा के आदेशानुसार कवियों ने वैसा ही किया। राजा ने उन्हें पुरस्कृत किया। संगीतकारों द्वारा वे गीत स्वर बद्ध किये गये। वे गीत विदेहराज्य में, मिथिला में गाये गये, लीलाओं द्वारा प्रस्तुत किये गये। मिथिला के लोग हर्ष से प्रफुल्लित हो गये । प्रसन्नता से एक साथ सहस्रों तालियाँ बज उठीं । मिथिलावासियों ने गायकों को पारितोषिक स्वरूप बहुत धन दिया।
रात्रि के समय वे गायक पखेरुओं को लिए वृक्षों पर चढ़ जाते । पखेरुओं के गले में कांस्य की पतली-पतली पत्तियाँ बाँधकर उषाकाल में उन्हें उड़ा देते, गीत गाने लगते । आकाश में उड़ते हुए पक्षियों के गले में बंधी कांसी की पत्तियाँ परस्पर टकराकर मधुर आवाज करतीं। मिथिला के नागरिक आवाज सुनते, आश्चर्यचकित हो जाते-देवता भी आकाश में उस राजकुमारी के रूप-लावण्य का प्रशस्ति-गान कर रहे हैं ।
विदेहराज तक यह बात पहुँची। उसने अपने यहाँ कवियों एवं संगीतकारों को आमन्त्रित किया। राजकुमारी पाञ्चालचण्डी के सौन्दर्य तथा अपने ऐश्वर्य की प्रशंसा में गीत सुने । उसे यह जानकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई कि पाञ्चाल राज अपनी सौन्दर्यवती पुत्री को मुझे देना चाहता है । उसने कवियों एवं संगीत कारों को प्रचुर धन द्वारा पुरस्कृत किया। वे वापस उत्तर पाञ्चाल आये, राजा ब्रह्मदत्त को मिथिला के समाचार बताये।
केवट्ट : मिथिला में
आचार्ब केवट्ट ने राजा ब्रह्मदत्त से कहा ''अब मैं विवाह का दिन निश्चित करने का बहाना लिये मिथिला जाना चाहता हूँ।"
राजा ने कहा - "आचार्य ! विदेहराज को देने हेतु कुछ उपायन साथ लिए जाएँ।" यों कहकर राजा ने केवट्ट को कुछ उपहार योन्य वस्तुएँ दीं।
___ केवट्ट उपहरणीय वस्तुओं के साथ बड़े आनन्दोत्साह पूर्वक मिथिला पहुँचा । उसका मिथिला-आगमन सुनकर लोगों में बड़ी उत्सुकता व्याप्त हो गई। यह सोचकर सब हर्ष का अनुभव कर रहे थे कि अब से पाञ्चालराज तथा विदेहराज में मैत्री-सम्बन्ध स्थापित होगा। पाञ्चाल राज ब्रह्मदत्त अपनी राजकुमारी का विदेहराज के साथ विवाह करेगा। केवट्ट पण्डित पाणिग्रहण का दिन निश्चित करने आ रहा है।
विदेहराज ने भी यह सुना, बोधिसत्त्व ने भी सुना । बोधिसत्त्व को कुछ ऐसी आन्तरिक अनुभूति हुई कि केवट्ट का आगमन शुभ-सूचक नहीं है। उसने विचार किया, मुझे वास्तविकता का पता लगाना चाहिए । उसने चळनी ब्रह्मदत्त के यहाँ नियोजित अपने व्यक्तियों के पास सन्देश भेजा कि उसे वस्तस्थिति की जानकारी दें। उनका उत्तर आया कि इस मन्त्रणा के सम्बन्ध में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं है। राजा और केवट्ट के मध्य यह विचार-विमर्श शयनागार में हुआ। वहां एक मैना रहती है। संभवतः वह इस सम्बन्ध में जानती हो।
बोधिसत्त्व ने विचार किया, हमारा नगर सुरक्षा आदि की दृष्टि से सुविभक्त रूप में
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