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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३११
केवट्ट-"एक अनुपम उपाय है। उसके सदृश और कोई उपाय नहीं है । सुनिए तो सही।"
राजा-"तो बतलाओ।" केवट्ट-"हम दो ही व्यक्ति रहेंगे । इस मन्त्रणा में तीसरा कोई नहीं होगा।" राजा-"बहुत अच्छा, ऐसा ही करेंगे।"
तब केवट्ट राजा को महल के ऊपर की मंजिल पर ले गया और बोला-"राजन् ! विदेहराज कामभोग-लोलुप है। उसे वैसा लोभ देकर हम यहाँ लायेंगे। महौषध को वह साथ लायेगा ही। महौषध के साथ उसकी यहाँ हत्या कर डालेंगे।"
राजा- आचार्य ! उपाय तो तुम्हें सुन्दर सूझा है, किन्तु, इसे क्रियान्वित कैसे करोगे?"
__ केवट्ट- "आपकी राजकुमारी पाञ्चालचण्डी परम रूपवती है। उसके अनिन्द्य सौन्दर्य तथा कला-कौशल के सम्बन्ध में कवियों से गीत लिखवायेंगे। उन काव्यात्मक गीतों का संगीतकारों द्वारा मिथिला में गान करायेंगे। गीतों का अन्तिम भाव होगा, यदि ऐसा परम दिव्य स्त्रीरत्न विदेहराज को लभ्य न हो तो उसे राज्य से, ऐश्वर्य से, वैभव से क्या लाभ ! ये गीत विदेहराज तक पहुँचेंगे। पाञ्चालचण्डी के रूप-लावण्य की प्रशंसा सुनकर विदेहराज उस पर आसक्त, अनुरक्त होगा। जब यहाँ यह ज्ञात हो जायेगा तो मैं मिथिला जाऊँगा, कहूँगा--विवाह का दिन नियत करने आया हूँ। दिन नियत कर वापस लौट आऊंगा। विदेहराज काँटे में फंसे मत्स्य की ज्यों लुब्ध हुआ महौषध के साथ यहाँ आयेगा। हम दोनों को यहाँ समाप्त कर डालेंगे । इस प्रकार विदेहराज राजकुमारी के स्थान पर मृत्यु का वरण करेगा।"
राजा ब्रह्मदत्त ने केवट्ट की मन्त्रणा स्वीकार की और कहा- "आचार्य ! आपको जो उपाय सूझा है, वास्तव में बहुत सुन्दर है। हम वैसा ही करेंगे।" यह विचार-विमर्श राजा ब्रह्मदत्त के महल की ऊपरी मंजिल-स्थित शयनागार में हो रहा था। वहाँ एक मैना थी। उसने उसे सुना। सौन्दर्य-गीत
राजा ब्रह्मदत्त ने काव्यकला प्रवीण कवियों को बुलाया। उन्हें प्रचुर धन द्वारा पुरस्कृत, सम्मानित किया। राजकुमारी पाञ्चालचण्डी को उन्हें दिखलाया और कहा"कवियो ! राजकुमारी के रूप-लावण्य के सम्बन्ध में गीतों की रचना करो।" कवियों ने ऐसा करना स्वीकार किया। कछ ही समय में वे बहत सरस, सुन्दर गीत लिखकर लाये, राजा को गीत सुनाये । गीत बहुत मनोहर थे। राजा ने उन्हें पारितोषिक दिया। कवियों से उन गीतों को नाटककारों और संगीतकारों ने सीखा तथा उन्हें संगीत की स्वर-लहरियों में निबद्ध कर रामलीलाओं में गाने योग्य बनाया। वे गीत जन-जन तक फैल गये।
राजा ने गायकों को बुलाया और उनसे कहा कि तुम बड़े-बड़े पक्षियों को लिये रात्रि को वृक्षों पर चढ़ जाओ, वहाँ बैठ जाओ। उषाकाल में उन पक्षियों के गले में कांस्य की पतली-पतली पत्तियाँ बाँध दो, पक्षियों को उड़ा दो, तुम गीत गाओ।
राजा ने यह इसलिए करवाया कि लोग समझे कि पाञ्चाल-नरेश की राजकुमारी के सौन्दर्य एवं रूप-लावण्य का गान आकाश में देवता तक करते हैं।
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