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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड : ३
लगी। मिथिला के प्राकार की बुर्जों पर विदेहराज के जो सैनिक तैनात थे, उन्होंने भी जोरजोर से हल्ला मचाया, तालियाँ पीटी । उस समय ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो वसुन्धरा फट गई हो, सागर क्षुभित हो गया हो। सारे नगर में भीतर और बाहर यह एक ही कोलाहल व्याप्त था । अठारह अक्षौहिणी सेना के सिपाहियों ने ऐसा समझा कि महौषध ने राजा चूळनी ब्रह्मदत्त को तथा तदधीनस्थ सभी राजाओं को बन्दी बना लिया है । वे मौत के भय से काँप उठे । उन्हें कहीं आश्रय नहीं सूझा। अपनी धोतियां तक वहीं छोड़ भाग छूटे । सैन्य शिविर खाली हो गया । चूळनी ब्रह्मदत्त और तत्सहवर्ती राजा किसी तरह उत्तर पांचाल पहुँचे ।
धन के अम्बार
दूसरे दिन सवेरे मिथिला का मुख्य दरवाजा खोला गया। चूळनी ब्रह्मदत्त द्वारा, अन्य राजाओं द्वारा, सेना द्वारा छोड़े गये धन के अम्बार लग गये । बोधिसत्त्व को यह सूचित किया गया तो उसने कहा - "भगोड़ों द्वारा छोड़ा गया यह घन अब हम मिथिला वालों का है । ऐसा किया जाए- सभी राजा जो धन छोड़ गये हैं, वह विदेहराज के पास पहुंचा दिया जाए। सेना के साथ आये गाथापतियों एवं केवट्ट का धन हमारे यहाँ लाया जाए। बाकी का धन मिथिलावासी बाँट लें।'
इतना धन तथा माल असबाब छूटा था कि कीमती सामान ढोने में पन्द्रह दिन व्यतीत हो गये, बाकी माल असबाब ढोने में चार महीने लग गये । बोधिसत्त्व ने अनुकेवट्ट को, जो इस युक्ति का मुख्य सूत्रधार था, अत्यधिक धन, वैभव दिया, सम्मानित किया । तभी से मिथिलावासी अत्यन्त सम्पन्न एवं समृद्धिशाली हो गये ।
पाञ्चालचण्डी
मिथिला नगर का घेरा तोड़कर भाग आने के बाद उत्तर पाञ्चाल में राजा चूळनी ब्रह्मदत्त को अग्ने अधीनस्थ राजाओं के साथ निवास करते हुए एक वर्ष व्यतीत हो गया । एक दिन का प्रसंग है, आचार्य केवट्ट दर्पण में अपना मुंह देख रहा था । उसे अपने मस्तक के घाव का निशान दृष्टिगोचर हुआ । उसने सोचा, यह श्रेष्ठि-पुत्र महौषध की करतूत है | उसने मुझे इतने राजाओं के मध्य शर्मिन्दा किया, मेरी इज्जत बिगाड़ी । केवट्ट यह सोचता हुआ क्रोध से लाल हो गया और मन ही मन कहने लगा, मैं अपने शत्रु से कब प्रतिशोध ले पाऊंगा ? वह इस ऊहापोह में खो गया । उसे एक उपाय ध्यान में आया । वह सोचने लगा, हमारे राजा के एक कन्या है, पाञ्चालचण्डी । वह परम रूपवती है, अप्सराओं के सदृश सुन्दर है | विदेहराज को यह कन्या देंगे, इस प्रकार उसे काम-भोग के लोभ में फाँसेंगे, यहाँ बुलायेगे । काँटे में फंसे मत्स्य के सदृश विदेहराज महौषध को साथ लिये उत्तर पाञ्चाल आयेगा । बहुत आसानी से दोनों को यहाँ मार डालेंगे। वह हमारी बहुत बड़ी विजय होगी। फिर विजयोपलक्ष्य में पानोत्सव आयोजित करेंगे। उसने अपने मन में यह विचार पक्का किया। वह राजा के पास आया और बोला – “राजन् ! एक परामर्श देने आया हूँ ।'
राजा ने कहा--"आचार्य ! तुम्हारे हो परामर्श का नतीजा था, हमें अपने कपड़े तक छोड़कर भाग आना पड़ा । अब और क्या करना चाहते हो ? अब आपके चुप रहने में ही गुण है ।"
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