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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३०९ सेना लेकर चला। उसने सेना को ऐसे स्थान पर उतारा, जहाँ भयानक मगरमच्छ थे। सैनिकों को मगरमच्छ निगलने लगे। वे बुों पर तैनात मिथिला के सैनिकों के बाण-शक्ति एवं तोमर आदि के प्रहारों से नष्ट होने लगे। भय के मारे वे वहीं रुक गये, आगे नहीं बढ़े। अन केवट राजा ब्रह्मदत्त के पास आया और उससे कहा-"राजन ! आपकी ओर से यद्ध करने वाला कोई नहीं है । यदि आपको मेरे कथन पर भरोसा न हो तो राजाओं को अपने वस्त्रों, अलंकारों तथा शस्त्रों से सज्जित होकर आपके समक्ष उपस्थित होने को कहें। वे जब आएं तो उनके द्वारा धारण किये गये वस्त्रों, आभूषणों तथा आयुधों को देखें, उन पर अंकित अक्षरों को देखें। यह सब सावधानी से सूक्ष्मता से करें।" महौषध की पूर्वतन योजनानुसार वस्त्रों, आभूषणों आदि पर उसका नाम अंकित था ही। राजा ने वह देखा। उसे विश्वास हो गया कि जैसा अनु केवट्ट कहता है, सब रिश्वत से दब गये हैं। ब्रह्मदत्त द्वारा पलायन
राजा यह देखकर आतंकित हो गया। वह अनु केवट्ट से बोला-"आचार्य ! अब क्या करें ?"
अनु केवट्ट ने कहा- "राजन् ! अब यहां कुछ भी करने योग्य नहीं है । यदि देर करेंगे तो महौषध निश्चय ही आप को बन्दी बना लेगा। मेरे सिवाय यहाँ कोई आपका हितैषी नहीं है। आज ही अर्धरात्रि के पश्चात् इस स्थान को छोड़ देना, यहाँ से भाग जाना उचित है।"
अधीर ब्रह्मदत्त बोला-"आचार्य आप ही मेरे लिए धोड़ा तैयार कराएं यहां से चल निकलने की व्यवस्था करें।"
अनु केवट्ट को निश्चय हो गया, राजा बहुत भयभीत हो गया है । वह अवश्य भागेगा। तब उसने ढाढ़स बंधाया- “महाराज ! हटिए मत ! मैं सब व्यवस्थाएं जुटा दंगा।" ऐसा कहकर वह राजा के पास से बाहर निकल आया। गुप्त रूप में कार्यरत महौषध के आदमियों के पास आया, उन्हें जागरूक किया, कहा-"आज अर्धरात्रि के पश्चात् राजा ब्रह्मदत्त यहाँ से भागेगा, तुम लोग अप्रमत्त रहना, सोना नही।" उसने राजा के लिए घोड़े पर काठी इतनी अच्छी कसी हुई लगवाई, जो भागते समय जरा भी हिले नहीं, उस पर बैठ कर राजा अनायास, सत्वर भाग जाए।
__ अर्धरात्रि के समय अनुकेवट्ट ने राजा को सूचित किया-“देव ! घोड़ा तैयार है।" राजा तो आतुर था ही, फौरन घोड़े पर सवार हो गया। घोड़ा भाग छूटा । अनु केवट्ट भी घोड़े पर सवार था। उसने कुछ दूर तक राजा के पीछे-पीछे घोड़ा दौड़ाया। फिर वह रुक गया। राजा ने अपना घोड़ा रोकने को लगाम खींची पर खूब कसी हुई काठी के कारण घोड़ा दौड़ने की त्वरा में था, रुका नहीं, भागता ही गया । अनु केवट्ट सेना में प्रविष्ट हो गया और जोर-जोर से हल्ला मचाने लगा कि राजा चूळ नी ब्रह्मदत्त युद्ध का मैदान छोड़कर भागा जा रहा है। अनुकेबट्ट द्वारा नियोजित पुरुषों ने भी अपने साथियों के साथ मिलकर जोर-जोर से यही शोर मचाया। ब्रह्मदत्त के अधीनस्थ सौ राजाओं ने जब यह सुना तो मन-ही-मन विचार किया कि महौषध पण्डित अपने नगर का द्वार खोल कर बाहर आ गया होगा, अब वह हमारा प्राण लेकर ही छोड़ेगा। वे बहुत भय-त्रस्त हो गये । अपनी सारी साधन-सामग्री वहीं छोड़, वे भाग छूटे। अनु केवट्ट के आदमियों ने फिर जोर-जोर से शोर मचाया कि राजा लोग भी मैदान छोड़कर भागे जा रहे हैं । सब ओर यह आवाज फैलने
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