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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन और महौषध के प्राण अब नहीं बच सकते । मुझे ज्ञान है, इस नगर का परकोटा किन किन स्थानों पर सुदृढ़ है और किन-किन स्थानों पर कमजोर है। मुझे यह भी मालूम है कि खाई में किन-किन स्थानों पर मगर आदि भीषण जल-जन्तु हैं और किन-किन स्थानों पर नहीं हैं। मेरे पास सही जानकारी है, आपके पास अपार शक्ति है। मैं बहुत जल्दी ही नगर पर आपका कब्जा करा दूंगा। यह सुनकर राजा ब्रह्मदत्त तुम पर भरोसा कर लेगा। तुम्हारा सम्मान करेगा। वह तुम्हें सेना तथा वाहन सौंप देगा, उनका निर्देशन तुम्हारे हाथ में दे देगा। तब तुम सेना को लेकर उस स्थान पर उतारना, जहाँ भीषण मगरमच्छ हों। उसके सैनिक मगरमच्छों को देखकर भयभीत हो जायेंगे और कहेंगे, हम नहीं उतरेंगे। तब तुम ब्रह्मदत्त से कहना-'राजन् ! आपकी फौज को महौषध ने फोड़ लिया है, भीतरी तौर पर अपनी ओर कर लिया है। उसने आचार्य सहित सारे राजाओं को रिश्वत दी है। इसलिए वे केवल दिखाने हेतु आपके आस-पास ही मंडराते रहते हैं, आगे कदम नहीं रखते। यदि आपको मेरे कथन पर भरोसा न हो तो आप सभी राजाओं को आदेश दें कि वे अपने-अपने आभूषणों, आयुधों से सुसज्जित होकर आपके समक्ष उपस्थित हों, तब आप बारीकी से गौर करें, उनके पास महौषध द्वारा दिये गये, उसके नामांकित कपड़े, गहने, तलवार आदि देखें तो मेरा विश्वास करें। तुम्हारे कथनानुसार ब्रह्मदत्त राजाओं को बुलायेगा, मेरे आदमियों द्वारा गुप्त रूप से उन्हें दी गई वस्तुएं उनके पास देखेगा तो वह यह विश्वास कर लेगा कि ये सब महौषध पण्डित से रिश्वत खाये हुए हैं। राजाओं के चले जाने के बाद वह तुमसे जिज्ञासा करेगा-पण्डित ! बतलाओ, अब क्या किया जाए? तब तुम उससे कहनामहौषध बड़ा छली एवं प्रपञ्ची है। यदि आप कुछ दिन और रहें तो वह सारी सेना को अपनी तरफ कर आपको बन्दी बना लेगा; अतः यही उचित प्रतीत होता है, जरा भी देर किये बिना आज ही अर्ध रात्रि के पश्चात् यहाँ से भाग चलें। आप यथार्थ मानिए, आचार्य केवट्ट भी महौषध से रिश्वत खा चुका है। वह यों ही केवल प्रदर्शनार्थ मस्तक का घाव लिये घूमता है। उसे कुछ करना धरना तो है नहीं। क्या आप नहीं देखते, उसने महौषध से बहुमूल्य मणि-रत्न लेकर आपको तीन योजन चले जाने पर फिर रोक लिया और बहकाकर फुसलाकर वापस ले आया। वह आपका अहितैषी और अशुभचिन्तक है। ऐसी स्थिति में अब एक रात भी यहाँ रहना खतरे से खाली नहीं हैं। राजा ब्रह्मदत्त तुम्हारे कथन से सहमत हो जायेगा। भागने के समय तुम अपने आदमियों को सूचित कर देना, वे अपने कर्तव्य की ओर अप्रमत्त रहें।"
महौषध का कथन सुनकर अनुकेवट्ट ब्राह्मण ने कहा-"पण्डित ! तुम्हारे निर्देश के अनुरूप मैं सब करूंगा।"
महौषध ने कहा- “देखो, यह राजनीति है, कूटनीति है, कुछ चोटें सहनी होंगी।"
- अनुकेवट्ट बोला- "मेरा जीवन सुरक्षित रहे, हाथ-पैर सुरक्षित रहें-बस, इतना ही चाहिए। इसके सिवाय सब कुछ सह्य होगा, कोई चिन्ता नहीं है, भय नहीं है।"
महौषध ने अनु के वट्ट के पारिवारिकजनों का सत्कार किया, उन्हें वृत्ति प्रदान की। जैसा आयोजित था, अनु केवट्ट की दुर्दशा की। उसे रस्से द्वारा परकोटे से उतार दिया। ब्रह्मदत्त के आदमियों ने उसे ले लिया। राजा ब्रह्मदत्त ने उसकी परीक्षा की, विश्वसनीय जाना, उसका सत्कार-सम्मान किया। उसे सेना लेकर बढ़ने को उत्साहित किया। वह
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