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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
धर्म-युद्ध
केवट्ट ने कहा- "राजन् ! यह हमारे लिए बड़ी शर्मनाक बात होगी। लोग कहेंगे, चूळनी ब्रह्मदत्त सौ राजाओं को ससैन्य साथ लेकर भी विदेहराज को पराजित नहीं कर सका। केवल महौषध ने ही पाण्डित्य और प्रज्ञा का ठेका नहीं लिया है। मैं भी प्रज्ञावान् हूँ। मैं एक षड्यन्त्र रचूंगा।"
ब्रह्मदत्त- आचार्य ! क्या षड्यन्त्र रचोगे ?" केवट्ट- "हम धर्म-युद्ध आयोजित करेंगे।' ब्रह्मदत्त-"धर्म-युद्ध से तुम्हारा क्या अभिप्राय है ?"
केवट-"सेना नही लड़ेगी, दोनों राजाओं के दोनों पण्डित एक स्थान पर एकत्र होंगे, मिलेंगे। उनमें जो पहले प्रणाम करेगा, वह पराजित माना जायेगा । धर्म-युद्ध में ऐसा होता है । महौषध यह रहस्य नहीं जानता । आयु में मैं ज्येष्ठ है, वह कनिष्ठ है । मुझे देखते ही वह प्रणाम करेगा। फलतः विदेहराज की पराजय मानी जायेगी। इस युक्ति द्वारा हम बिना लड़े विदेहराज को पराजित कर अपने राज्य में लौट जायेंगे। यह धर्म-युद्ध की रूपरेखा है।"
महौषध को तत्काल इस षड्यन्त्र का पता चल गया। वह मन-ही-मन कहने लगा. षड्यन्त्री केवट्ट मुझे पराजित नहीं कर सकता। यदि मैं केवट्ट से पराजित हो जाऊं तो मेरा नाम महौषध नहीं।
राजा ब्रह्मदत्त को यह योजना पसंद आई। उसने कहा- "आचार्य ! आपने यह बड़ा उत्तम उपाय सोचा है । उसने विदेहराज को उद्दिष्ट कर एक पत्र लिखवाया। छोटे दरवाजे के मार्ग से वह पत्र विदेहराज के पास प्रेषित किया। पत्र में उल्लेख था-"कल धर्मयुद्ध आयोजित होगा। मेरी ओर के पण्डित तथा आपकी ओर के पण्डित का मुकाबला होगा । धर्मानुसार हार-जीत का फैसला होगा। धर्म-युद्ध की यह चुनौती जो स्वीकार नहीं करेगा, उसकी हार समझी जायेगी।"
विदेहराज ने महौषध पण्डित को बुलवाया। उसे सारी बात बतलाई। महौषध पण्डित ने जबाब दिया-"राजन् ! बहुत अच्छी बात है। आप उत्तर दिलवा दीजिएकल सबेरे ही पश्चिमी दरवाजे पर धर्म-युद्ध का मञ्च तैयार मिलेगा। वहाँ आ जाएं। विदेहराज ने, राजा ब्रह्मदत्त का जो दूत धर्म-युद्ध का सन्देश लेकर आया था, उसी के साथ इस आशय का पत्र भेज दिया।
___ महौषध ने केवट्ट को हराने का संकल्प किया। पश्चिमी दरवाजे पर धर्म-युद्ध का मञ्च तैयार करवाया। केवट्ट धर्म-युद्ध में आने को तैयार होने लगा। न जाने कब क्या हो जाए, यह सोचकर केवट्ट की सुरक्षा के लिए अनेक व्यक्तियों ने उसे अपने घेरे में लिया। ब्रह्मदत्त के अधीनस्थ एक सौ राजा भी धर्म-युद्ध के लिए निर्मापित मञ्च के निकट पहुँच गये। केवट्ट भी वहाँ पहुँच गया।
___ उघर बोधिसत्त्व ने सवेरा होते ही शौचादि से निवृत्त हो, सुरभित जल से स्नान किया। काशी में निर्मित एक लक्ष के मूल्य का उत्तम वस्त्र धारण किया। सब प्रकार के आभूषणों से अपने को सुशोभित किया। विविध प्रकार का उत्तम भोजन ग्रहण किया। तत्पश्चात् वह राजभवन के दरवाजे पर गया। विदेहराज ने उसका स्वागत किया, भीतर
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