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३०२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड :३ जो कोई सरकण्डे में बंधा पत्र देखे, वहाँ से उसे ले आए, मुझे सौंप दे। तदनुसार एक पुरुष ने वह महौषध पण्डित के पास पहुंचा दिया। महौषध ने सरकण्डे में बँधे पत्र को निकाला। उसमें उल्लिखित समाचार पढ़ा। आत्मसामर्थ्य के प्रकाट्य की भाषा में बोलते हुए उसके मुंह से निकला-वे नहीं जानते, मैं महौषध पण्डित हूँ। फिर उसने साठ हाथ लम्बा एक बाँस मंगाया। उसे बीच में से चिरवाया, साफ करवाया। एक साथ जुड़वाया, ऊपर चर्म द्वारा बंधवाया। फिर उसके ऊपर मृत्तिका लिपवाई। हिमालय पर साधना द्वारा जिन्होंने विशेष ऋद्धियाँ प्राप्त की थीं, ऐसे योगनिष्ठ तपस्वीजनों द्वारा आनीत कर्दम-कुमुद के बीज पूष्पकरिणी के किनारे गारा डलवाकर उप्त करवाये। उस स्थान पर वह बाँस रखवाया। उसे जल से आपूर्ण करवाया। एक ही रात्रि में कुमुद पुष्प उग कर बांस की खोल में से बढ़ता हुआ ऊपर निकला । महौषध ने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि उसे तोड़ लो और बह्मदत्त को दो । उन्होने कुमुद को नाल से तोड़ा। उसे नाल में लपेटा तथा वहाँ फेंक दिया, जहाँ ब्रह्मदत्त के परिचर थे । फेंकते हुए कहा-"यह इसलिए है कि ब्रह्मदत्त के चरणों की सेवा करने वाले परिचर, अनुचर आदि भूखें न मरे, इसे ले लें, नाल को खा ले, कुमुद-पुष्प को सज्जा, विभूषा के लिए धारण करें। महौषध पण्डित द्वारा नियुक्त पुरुषों में से एक के हाथ में यह पड़ा । उसने उसे ब्रह्मदत्त में समक्ष उपस्थापित किया और कहा---"महाराज ! इस कुमुद की नाल तो देखें। हमें इतनी लम्बी नाल जीवन में कभी नहीं देखी। राजा बोला-'इस नाल को नापो।" महौषध पण्डित के आदमियों ने उसे नापने में चालाकी की। नाल जो साठ हाथ लम्बी थी, उसे अस्सी हाथ लम्बा बताया। राजा ने यह जानना चाहा कि यह कुमुद कहाँ उत्पन्न हुआ? उन आदमियों में से एक ने असत्य उत्तर दिया। उसने कहा"राजन । एक दिन मैं बहत पिपासित था। इच्छा हई, आज सूरा-पान द्वारा अपनी प्यास बुझाऊं। मैं छोटे दरवाजे में से किसी तरह नगर में प्रविष्ट हो गया। मैंने वहाँ नागरिकों के क्रीड़ा-विनोद हेतु निर्माणित बड़ी-बड़ी पुष्पकरिणियाँ देखीं। वहाँ नौका-विहार करते हए लोगों को ऐसे पुष्प तोड़ने हुए देखा। यह पुष्प पुष्करिणी के तट पर उगा हुआ है। गहरे जल में उगे पुष्प तो सौ-सौ हाथ नाल के होंगे ही।" यह सुनकर राजा ब्रह्मदत्त आश्चर्य में डूब गया।
राजा ने आचार्य केवट्ट से कहा-"आचार्य ! जल-संकट उपस्थित कर नगर को नहीं जीता जा सकता। इसमें जलपूर्ण कितनी ही पुष्करिणियां पहले से ही विद्यमान हैं। जल-संकट उपस्थित करने की अपनी योजना आप वापस लौटा लीजिए। कुछ और सोचिए।"
धान्य-संकट
केवट्ट ने कहा-"अच्छा, तो धान्य का संकट उत्पन्न कर इसे जीतेंगे। धान्य नगर के बाहर से आता है। इसके आने के सब मार्ग रोक देगे । यह सुनकर राजा ब्रह्मदत्त बोला"आचार्य ! यह ठीक है । खाद्यान्न के अभाव में विदेहराज को हमारे अधीन होना ही पड़ेगा।"
अपने छद्मवेषी गुप्तचरों द्वारा महौषध पण्डित को यह समाचार मिल गया। उसके मुंह से निकला-ब्राह्मण केवट्ट मेरे पाण्डित्य एवं प्रज्ञोत्कर्ष को नहीं जानता। महौषध ने अपने नगर के परकोटे पर गारा बिछवाया। उसमें धान उप्त कर दिये। बोधिसत्त्वों
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