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________________ [तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक ३०१ गई है । इसीलिए उसने ढोल बजाकर स्वयं उत्सव की घोषणा करवाई । तदनुसार यह उत्सव चल रहा है।' राजा अपने महल की ऊपरी मंजिल पर बैठा हुआ उत्सव देख रहा है मदिरा पान कर रहा ब्रह्मदत्त ने यह सुना तो वह क्रोध से आग बबूला हो गया । उसने अपनी फौज के एक भाग को आदेश दिया कि नगर पर हमला करो, खाइयों को तोड़ डालो, परकोटे लांघ जाओ, दरवाजे की बड़ी-बड़ी बुर्जों को ध्वस्त कर डालो, नगर में प्रविष्ट हो जाओ । जैसे गाड़ियों में मिट्टी के बर्तन लादकर लाये जाते हैं, उसी प्रकार मिथिला वासियों के मस्तक, विदेहराज का मस्तक काट कर, गाड़ियाँ भरकर मेरे पास लाओ । राजा ब्रह्मदत्त का यह आदेश सुनकर अनेक वीर योद्धा विविध प्रकार के शस्त्रास्त्रों से सुसज्जित होकर दरवाजे के समीप पहुँचे । महौषध के सैनिक, जो पहले से ही वहाँ नियुक्त थे, आने वाली परिस्थितियों का सामना करने को तत्पर थे, उन्होंने उन पर उबला हुआ कीचड़, पत्थर आदि फेंके । आक्रमण करने को उतारू सैनिक घबरा गये, वापस लौट आये । ब्रह्मदत्त के सैनिक नगर का प्राकार तोड़ने हेतु खाई लांघकर जाने को उद्यत होते तो बुर्जी के बीच में खड़े हुए मिथिला के योद्धाओं के बाणों से तथा अन्यान्य शस्त्रों के प्रहार से पीड़ित होते, नष्ट होते । महौषध पण्डित के योद्धा ब्रह्मदत्त के योद्धाओं के प्रहारोद्यत हाथों की नकलें करते हुए उनको तरह-तरह से गालियां देते, धमकाते । वे सुरा-पात्र हाथ में लेते, मत्स्य- मांस की सलाखें हाथ में लेते, दूर खड़े ब्रह्मदत्त के योद्धाओं की ओर आगे बढ़ाते, उन्हें दिखाते, कहते - तुम्हें ये नहीं मिलते होंगे, जरा पी लो, खा लो, यों उन्हें चिढ़ाकर खुद पी जाते, खा जाते । वे परकोटे पर खुशी से चहलकदमी करते इस प्रकार सुरक्षित थे कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । नैराश्य ब्रह्मदत्त के योद्धा अपने राजा के पास गये और कहने लगे – “राजन् ! विशिष्ट ऋद्धिप्राप्त पुरुषों के अतिरिक्त मिथिला को कोई नहीं जीत सकता ।" चार-पाँच दिन व्यतीत हो गये, ब्रह्मदत्त ने देखा, जिस राज्य को हथियाने आये थे, अब तक हम उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके । उसने आचार्य केवट्ट से कहा - "हम नगर पर कब्जा नहीं कर सकते, कोई भी वहाँ तक नहीं पहुँच सकता, क्या किया जाए ।" जल संकट का आतंक केवट्ट ने कहा – “राजन् ! चिन्ता मत कीजिए, एक उपाय, ध्यान में आया है । जल प्रायः नगर से बाहर होता है । यहाँ भी ऐसा ही होगा । यदि हम जल बन्द कर दें तो हमारा अभियान सफल होगा। नगर के लोग जब जल के अभाव में दुःखित होंगे, तो वे स्वयं ही दरवाजे खोल देंगे ।" राजा ब्रह्मदत्त को लगा, यह उपाय समुचित है । उसने केवट्ट का सुझाव स्वीकार किया। नगर में किसी भी तरह जल न पहुँचे, ऐसी अवरोधक व्यवस्थाएँ कीं । महौषघ द्वारा नियुक्त गुप्तचरों को ब्रह्मदत्त की इस योजना का पता चल गया । उन्होंने पत्र में ये समाचार लिखे । उसे एक सरकण्डे में बाँधा व उसके द्वारा महौषध के पास समाचार भेजा । महौषध ऐसे विषयों में पहले से ही जागरूक था । उसने आदेश दे रखा था कि Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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