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________________ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ जब महौषध ने राजा का यह कथन सुना, तो उसने सोचा-यह राजा मृत्यु से डरा हुआ है। जैसे रुग्ण पुरुष को चिकित्सक का सहारा चाहिए, बुभुक्षित व्यक्ति को भोज्यपदार्थ चाहिए, पिपासु को जल चाहिए, उसी प्रकार मेरे सिवाय इस समय इसके लिए और कोई शरण नहीं है । मैं इसकी व्याकुलता, व्यथा दूर करूं । यह सोचकर महौषध ने पाषाणखण्ड पर अवस्थित सिंह की ज्यों गर्जना करते हुए कहा-'राजन् ! भय न करें । सुखपूर्वक राज्य का भोग करें। डंडे से जैसे कौओं को उड़ा दिया जाता है, कमान द्वारा जैसे बन्दरों को भगा दिया जाता है, मैं इस अठारह अक्षौहिणी सेना को इस प्रकार भगाऊंगा कि सैनिकों को, योद्धाओं को भागते हुए अपनी धोतियों तक की सुध नहीं रहेगी। उसने आगे कहा-"राजन् ! पैर फैलाकर सुख से सोएं, सांसारिक भोगों का आनन्द लें। मैं ऐसा उपाय करूंगा, जिससे राजा ब्रह्मदत्त पांचालिक सेना का परित्याग कर भाग खड़ा होगा।" महौषध पण्डित ने राजा को इस प्रकार भरपूर धीरज बंधाया। फिर वह नगर से बाहर निकला, नगर में वृहत् उत्सव मनाने की घोषणा हेतु ढोल बजवाया। उसने नगरवासियों को आश्वासन देते हुए कहा-"तुम लोग निश्चिन्त रहो, सात दिन तक आनन्दोत्सव मनाओ, पुष्प मालाएं धारण करो, चन्दन आदि सुगन्धित पदार्थों का देह पर विलेपन करो, सुस्वादु, उत्तम भोज्य, पेय-पदार्थों का सेवन करो, यथेच्छ सुरा-पान करो, नाचो, गाओ, बजाओ, चिल्लाओ, तालियाँ पीटो। इस उत्सव-समारोह में जो भी धन व्यय होगा, वह मेरे जिम्मे रहेगा । महौषध का भी प्रज्ञा-प्रभाव-बौद्धिक चमत्कार देखो, वह क्या करता है।" महौषध ने उन्हें यह भी समझा दिया कि ब्रह्मदत्त के आदमी उत्सव के सम्बन्ध में जब उनसे पूछे तो वे क्या उत्तर दें। जैसा महौषध ने संकेत दिया था, सबने वैसा ही किया । संगीत की स्वर-लहरियाँ तथा वाद्य-ध्वनि बाहर तक सुनाई दे रही थीं। पाञ्चाल सैनिक सुन रहे थे । नगर के छोटे द्वार से-गुप्त द्वार से लोग भीतर आते थे। द्वार पर पहरे का भारी इन्तजाम था। भीतर आने वालों को खूब देख-देखकर आने दिया जाता था। इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था कि शत्रु के लोग कहीं प्रवेश न कर जाएं। नगर में आनन्दोल्लासमय उत्सव चल रहा था। जो भी बाहर से आते, वे लोगों को उत्सव में, मनोविनोद में, हास-परिहास में निमग्न देखते । चळनी ब्रह्मदत्त ने, जो अपनी सेनाओं के साथ घेरा डाले पड़ा था, यह कोलाहल सुना, अपने मन्त्रियों से कहा- "अठारह अक्षौहिणी सेना हमारे साथ है । हमने उस द्वारा नगर को घेर रखा है, किन्तु, बड़ा आश्चर्य है, नगरवासियों में न कोई भय है, न आतक है, वे प्रसन्नता-पूर्वक उत्सव मना रहे हैं, तालियाँ पीट रहे हैं, शोर मचा रहे हैं, गा रहे हैं।" महौषध द्वारा नियुक्त गुप्तचरों ने उसे मिथ्या सूचना दी-"राजन् ! प्रयोजनवश किसी तरह छोटे द्वार से हमने नगर में प्रवेश किया। हमने उत्सव-रत नागरिकों से पूछा'अरे ! सारे जम्बूद्वीप के राजाओं ने तुम्हारे नगर को घेर रखा है, तुम जलसा मना रहे हो, बड़े प्रमादी-लापरवाह मालूम पड़ते हो।' उन्होंने बड़े सहज भाव से उत्तर दिया- 'बाल्यावस्था से ही हमारे राजा की एक आकांक्षा थी, जब समस्त जम्बूद्वीप के राजा मेरा नगर घेर लेंगे, तब बहुत बड़ा समारोह आयोजित कराऊंगा। आज उसकी यह आकांक्षा पूर्ण हो १, पादे देव ! पसारेहि भुञ्जकामे रमस्सु च । हित्वा पञ्चालियं सेनं ब्रह्मदत्तो पलायति ॥१२॥ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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