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________________ xxxiv आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड : ३ ब्राह्मणकुमारों की दुर्दशा: यज्ञाधिपति द्वारा क्षमा-याचना मुनि द्वारा भिक्षा ग्रहण देवोत्सव : तप का माहात्म्य उद्बोधन १४७ १४८ १४८ १४८ मातंग जातक १५० १५० १५१ १५२ १५२ १५३ १५३ १५४ पिण्डोल भारद्वाज दिटु मंगलिका दिट्ठ मंगलिका द्वारा क्षोभ मातंग का आग्रह : दिट्ठ मंगलिका की प्राप्ति मातंग द्वारा प्रव्रज्या महाब्रह्मा का अवतरण दिट्ठ मंगलिका के गर्म पुत्र-प्रसव मंडव्यकुमार ब्रह्मभोज मातंग पण्डित भिक्षु का अपमान बोधिसत्त्व के मृदु वचन अवहेलना यक्षों द्वारा दण्ड दिट्ट मंगलिका द्वारा अनुगमन : अनुनय अमृतोषध अहंकार-मार्जन १५४ १५४ १५६ १५८ १५६ २. राजा प्रवेशी : पायासी राजन्य १६४-२०३ राजा प्रदेशी आमलकल्पा सूर्याभदेव १६५ भगवान् महावीर दर्शन की उत्कण्ठा : तैयारी १६५ दर्शन : वन्दन सूर्याभदेव : दिव्य नाट्य-विधि १६७ सूर्याभ का पूर्व-मव १६८ श्रमण केशी कुमार : श्रावस्ती-आगमन १६८ राजा प्रदेशी के प्रश्न : श्रमण केशी द्वारा समाधान १७१ अवसान १८५ ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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