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________________ २६८ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [ खण्ड : ३ सौ राजाओं की अठारह अक्षौहिणी सेना हमारे साथ है । उसे साथ लिये हम उस ओर बढ़ें ।” ब्राह्मण केवट्ट बड़ा पण्डित था— उत्तम प्रज्ञा का धनी था । उसने समझ लिया, महौषध पण्डित को जीत पाना शक्य नहीं है । यदि वैसा कदम उठायेगे तो लज्जित होना पड़ेगा; इसलिए मुझे चाहिए कि राजा को वैसा करने से रोकूं । यह सोचकर वह बोला"राजन् ! यह विदेहराज की ताकत नहीं है । यह सब महौषध पण्डित का बुद्धि-कौशल है । वह बड़ा प्रतापशाली है, प्रज्ञावान् है । जिस प्रकार मृगराज द्वारा सुरक्षित गिरि-गुहा को नहीं जीता जा सकता, उसी प्रकाश उस द्वारा सुरक्षित मिथिला को हम नहीं जीत पायेंगे । यदि हमने वैसा दुष्प्रयास किया तो उसका परिणाम हमारे लिए लज्जाजनक होगा । इस - लिए हमें वहाँ नहीं जाना चाहिए ।" राजा को अपनी शक्ति का अभिमान था, ऐश्वर्य का मद था । उसे केवट्ट की बात नहीं जंची। वह बोल उठा - "हम इतने शक्तिशाली हैं, महौषध हमारा कुछ भी बिगाड़ नहीं कर सकता ।" राजा केवट्ट की सलाह की परवाह नहीं करता हुआ सौ राजाओं तथा अठारह अक्षौहिणी सेना लिये विजयाभियान पर निकल पड़ा । केवट्ट ने देखा, राजा अत्यन्त मदोद्धत है । वह मेरे अभिमत से सहमत नहीं हुआ । राजा के निश्चय के विरुद्ध जाना, उसका विरोध मोल लेना मेरे लिए उचित नहीं है । यह सोचकर वह भी साथ हो गया । तब तक महौषध के योद्धा मिथिला पहुंच चुके थे। उन्होंने जो कुछ किया, महौषध पण्डित को बताया । महौषध के आदमियों ने सन्देश भेजा कि राजा चूळनी ब्रह्मदत्त मिथिला को अधिकृत करने तथा विदेहराज को पकड़ने हेतु अपने अधीनस्थ सौ राजाओं एवं उनकी और अपनी सेनाओं के साथ आगे बढ़ रहा है । आप जागरूक तथा सावधान रहें । ब्रह्मदत्त ससैन्य जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, उसकी सूचना महौषध के पास वे भिजवाते गये । महौषध इससे और अधिक सावधान होता रहा । विदेहराज ने भी सुना कि चूळनी ब्रह्मदत्त मेरे नगर पर आक्रमण करने आ रहा है । 1 1 ब्रह्मदत्त सेना सहित निर्दिष्ट स्थान पर पहुंच गया। रात्रि का प्रथम प्रहर था । उसके सैनिकों के हाथों में लाखों मशालें थीं । उन्हें साथ लिये मिथिला नगर को घेर लिया । नगर के चारों ओर हाथियों का घेरा डाला, रथों का घेरा डाला, घोड़ों का घेरा डाला । ऐसा प्रतीत होता था, मानो हाथियों, रथों और घोड़ों के प्राकार - परकोटे हों । सेना के लोग खड़े शोर कर रहे थे, तालियां पीट रहे थे, कोलाहल कर रहे थे, मस्ती से नाच रहे थे, गर्जना कर रहे थे । मशालों की रोशनी तथा मणि आभूषणों की दीप्ति से सात योजन विस्तीर्ण मिथिला नगरी आलोकमय हो उठी। हाथियों की चिंघाड़, घोड़ों की हिनहिनाहट, रथों, पदातियों एवं वाद्यों की आवाज से ऐसा लगता था, मानो धरती फटी जा रही हो । विदेहराज के चारों पण्डितों ने यह कोलाहल सुना । उन्हें वस्तुस्थिति का ज्ञान नहीं था। वे विदेहराज के पास गये और कहने लगे- "राजन् ! बड़ा शोर हो रहा है। मालूम नहीं, यह क्या है ? हमें इसकी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।" राजा ने मन-ही-मन विचार किया, संभव है, चूळनी ब्रह्मदत्त मिथिला पर आक्रमण करने आ गया हो । उसने महल की खिड़की खोली । उससे बाहर की ओर भांका तो उसकी आशंका सही निकली । Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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