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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ]
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कथानुयोग - चतुर रोहक : महां उम्मग्ग जातक २६७ अवगत कराया, सब बातें विशद रूप में समझाईं, सिखाईं और उनसे कहा - " मित्रो ! राजा चूळनी ब्रह्मदत्त अपने बगीचे को सुसज्जित, विभूषित कराकर एक सौ राजाओं के साथ विजयपानोत्सव - अपनी विजय के उपलक्ष्य में मदिरा पान का आयोजन कर रहा है । वह विजयपानोत्सव नहीं है, मृत्युपानोत्सव है । विषमिश्रित मदिरा पिलाकर ब्रह्मदत्त राजाओं की हत्या करना चाहता है । मैं चाहता हूँ, यह पाप कृत्य न हो। तुम वहाँ पहुँच जाओ । जब राजाओं के आसन लगा दिये गये हों और जब तक कोई भी उन पर नहीं बैठा हो, सब खाली पड़े हों, तुम लोग यह कहना - राजा चूळनी ब्रह्मदत्त के आसन के ठीक बाद न्यायतः हमारे राजा का आसन है । तुम उस पर कब्जा कर लेना । यदि वहाँ के आदमी पूछें - तुम किसके व्यक्ति हो तो कह देना, हम विदेहराज के आज्ञानुवर्ती अधिकारी है । वे कहेंगे- - सात दिन, सात महीने और सात वर्ष में हमने युद्धोद्योग कर अनेक राज्य लिये, पर, एक दिन भी हमारे ध्यान में नहीं आया कि तुम्हारा भी कोई राज्य है । जाओ, सबके अन्त में जो आसन लगा है, लेलो । यों वे तुम्हारे साथ संघर्ष करेंगे । तुम लोग संघर्ष बढ़ा देना और कहना कि ब्रह्मदत्त के अतिरिक्त कोई भी राजा हमारे राजा से विशिष्ट नहीं है । फिर कहना - यह कितनी बुरी बात है, हमारे राजा के लिए आसन तक नहीं लगाया । हम यह समारोह नहीं होने देंगे । न हम विजयोपलक्ष्य में मदिरापान करने देगे और न इस अवसर पर विशेष रूप से तैयार किये गये मत्स्य -मांसादि पदार्थ ही खाने देंगे । इस प्रकार हल्ला करना, शोर मचाना, धमकियों द्वारा उन्हें वर्जित करना, त्रस्त करना, एक बड़ा-सा डंडा लेकर सभी सुरा-पात्रों को फोड़ डालना, मत्स्य-मांस को इधर-उधर बिखेर देना, खाने लायक न रहने देना । फिर शीघ्रता से सेना में घुस जाना, देवताओं के नगर में प्रविष्ट असुरों की ज्यों उसमें हलचल मचा देना और उन्हें कह देना - हम मिथिला नगरी के महौषध पण्डित के व्यक्ति हैं, यदि किसी में शक्ति हो तो हमारा कुछ करें, हमें पकड़ें। इस प्रकार उन्हें आतंकित कर वहाँ से चले आना ।
योद्धाओं ने कहा—“स्वामिन् ! हम ऐसा ही करेंगे।" वे शस्त्र सज्जित हुए। वहाँ से प्रस्थान किया । यथा स्थान पहुँचे । वहाँ का बगीचा देवोद्यान की ज्यों विभूषित था । एक बड़ा सफेद चन्दौवा तना था । उसके नीचे सौ राजाओं के लिए सौ सिंहासन लगे थे । योद्धाओं ने वह ऐश्वर्य छटा देखी। उन्होंने सब वैसा ही किया, जैसा महौषध ने उन्हें समझाया था। लोगों में खलबली मचगई । सब हक्के-बक्के रह गये । वे योद्धा यह सब कर मिथिला लोट आये ।
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राजपुरुषों ने राजा चूळनी ब्रह्मदत्त को एवं तदधिकृत, समागत राजाओं को इस घटना से सूचित किया । ब्रह्मदत्त को बड़ा क्रोध आया — बहुत बुरा हुआ, हमारी सारी योजना ही ध्वस्त हो गई । राजा भी बहुत क्रुद्ध हुए - विजयोपलक्ष्य में आयोजित सुरापान से हमें वंचित कर दिया। सैनिक भी बड़े नाराज हुए - निःशुल्क बढ़िया मदिरापान का अवसर था, हमें वह नहीं लेने दिया गया ।
ब्रह्मदत्त ने राजाओं को अपने पास बुलाया और कहा - "हम मिथिला पर आक्रमण करेंगे | विदेहराज का खड्ग द्वारा शिरच्छेद करेंगे, उसे अपने पैरों से रौंदेंगे और फिर हम विजयोत्सव में सुरापान करेंगे।"
फिर ब्रह्मदत्त ने केवट्ट को एकान्त में बुलाया और कहा - " देख रहे हो, हमारी सारी योजना मिट्टी में मिला दी गई। वैसा करने वाले शत्रु को हम पकड़ेंगे, दण्डित करेंगे ।
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