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आगम और त्रिपिटक :
[खण्ड : ३
नियुक्त उसके गुप्तचर उसके पास लगातार सूचनाएं प्रेषित करते-"ब्रह्मदत्त का विजयाभियान उत्तरोत्तर गतिशील है। उसने अब तक इतने नगरों, इन-इन नगरों पर अधिकार कर लिया है। आगे अधिकार करता जा रहा है। आप प्रमादशून्य रहें।" महौषध वापस उत्तर भिजवाता--- "मैं यहाँ सतत जागरूक हूँ। तुम सावधानी से अपने कार्य में तत्पर रहो।"
सात वर्ष, सात महीने तथा सात दिन के समय के अन्तर्गत चूळनी ब्रह्मदत्त ने विदेह राज्य के अतिरिक्त समस्त जम्बूद्वीप पर अपना कब्जा कर लिया। राजा ब्रह्मदत्त ने केवट्ट से कहा- “आचार्य! विदेह राज्य पर अधिकार करना अभी बाकी है, हम उधर बढ़े, नगर को घेरें।" केवट्ट बोला-"राजन् ! महौषध पण्डित के होते हुए यह संभव नहीं है कि हम नगर पर अधिकार कर सकें। वह बहुत बुद्धिशील है तथा उपाय खोजने में परम प्रवीण है।" केवट्ट ने उसके अनेक गुणों की चर्चा की। वह खुद भी समुचित उपाय-सर्जन में प्रवीण था; अतः वह केवट्ट की विशेषताओं को यथार्थत: समझता था। उसने ब्रह्मदत्त को उपयुक्त विधि से समझा दिया कि मिथिला का राज्य बहुत छोटा-सा है, हमने समग्र जम्बूद्वीप का राज्य अधिकृत कर लिया है, इस छोटे से राज्य को न लिया जाए तो कोई विशेष बात नहीं। शेष राजा, जो कहते थे कि मिथिला राज्य को जीत लेने के बाद ही जयपान करेंगे, केवट्ट ने उन्हें भी राजी कर लिया कि विदेह जैसे अति सामान्य से राज्य को लेकर हमें क्या करना है । वह तो एक प्रकार से हमारा ही है, जब चाहेंगे तब ले लेंगे, इसलिए अब हम रुक जाएं, आगे न बढ़े। केवट्ट ने बहुत उत्तम रीति से उन्हें समझाया। वे मान गये, रुक गये।
महौषध द्वारा नियुक्त पुरुषों ने उसके पास सूचना प्रेषित की, चूळनी ब्रह्मदत्त सौ राजाओं के साथ मिथिला पर आक्रमण करने आ रहा था, पर, वह आते आते रुक गया, वापस अपने नगर को लौट गया। महौषध ने उनको कहलवाया-“आगे उसका क्या कार्यक्रम है, वह क्या करने जा रहा है, इसकी पूरी जानकारी प्राप्त करो तथा यथा समय मेरे पास पहुँचाते रहो।"
उधर ब्रह्मदत्त ने केवट्ट से पूछा - "अब हमें क्या करना चाहिए ?" केवट्ट ने कहा-- "अब हम लोग विजय-पान करेंगे।" उसने नौकरों को आदेश दिया कि उद्यान को खूब सजाना है, सौ चषकों में मदिरा तैयार रखनी है, विविध प्रकार के मत्स्य-मांसादि स्वादिष्ट पदार्थ प्रस्तुत करने हैं। समझ कर यह सब करने में लग जाओ।
वहाँ गुप्त रूप से कार्यरत महौषर के आदमियों ने यह समाचार महौषध को भेज दिया। उनको यह ज्ञान नहीं था कि मदिरा में विष मिलाकर अधिकृत राजाओं को मार डालने का षड्यन्त्र है । महौषध को यह सब मालूम था; क्योंकि शुक-शावक ने उसको यह पहले ही बता दिया था, जब राजा ब्रह्मदत्त तथा केवट्ट ब्राह्मण ने यह मन्त्रणा की थी।
महौषध ने अपने आदमियों को सूचित करवाया कि विजयोपलक्ष्य में मदिरा-पान का वह आयोजन कब होगा, सही पता लगाकर सूचना करो। उन्होंने सुरापान-समारोह के ठीक दिन का पता किया, महौषधपण्डित को इसकी सूचना दी। पण्डित ने विचार कियामुझ जैसे प्रज्ञाशील पुरुष के रहते इतने राजाओं का बेमौत मरना उपयुक्त नहीं है। मैं उनको बचाऊंगा । उसने उन हजार योद्धाओं को, जो उसके साथ ही जन्मे थे-जिस दिन उसका जन्म हुआ, उसी दिन जिनका जन्म हुआ था, अपने पास बुलवाया । उनको सारी स्थिति से
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