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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक
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किर' शब्द करता हुआ पेड़ की डाली से उड़ा और कहता गया- केवट्ट । शायद तुम समझते हो कि तम्हारी मन्त्रणा मात्र चार कानों तक मर्यादित है। तम्हारा यह भल है। वह इसी समय छः कानों तक जा चकी है, फैल चकी है। वह शीघ्र ही आठ कानों तक पहुंचेगी। उत्तरोत्तर फैलती जायेगी। फैलती-फैलती सैकड़ों कानों तक पहुँच जायेगी।" केवट तथा राजा यह कहते रह गये कि इस तोते को पकडो. पकडो । वह पवन की ज्यों तीव्र गति से उड़ा। बहुत ही कम समय में मिथिला पहँच गया। महौषध पण्डित के घर गया उसका यह नियम था कि यदि उस द्वारा लाई गई सूचना केवल महौषध को ही बतानी होती तो वह उसी के स्कन्ध पर उतरता। यदि महौषध एवं अमरा देवी दोनों को बताने लायक होती, तो वह महौषध की गोदी में उतरता तथा यदि सभी लोगों के जानने लायक होती तो वह भूमि पर उतरता। वह शुक-शावक पण्डित के स्कन्ध पर आकर बैठा। इस इशारे से लोग भांप गये कि यह कोई गोपनीय बात कहना चाहता होगा । वे वहाँ से हट गये । महौषध पण्डित शुक-शावक को साथ लिये अपने भवन की ऊपर की मंजिल पर गया और उससे पूछा - "तात ! क्या देखने का, क्या सुनने का अवसर प्राप्त हुआ ?"
शुश-शावक ने कहा- 'मैं समस्त जम्बूद्वीप में घूमा। मुझे तदन्तर्वर्ती किसी भी देश के राजा से कोई भय, कोई खतरा प्रतीत नहीं होता, किन्तु, कम्पिल राष्ट्र के उत्तर पाञ्चाल नगर में राजा चळनी ब्रह्मदत्त का पुरोहित, जिसका नाम केवट है, बड़ा खतरनाक है। वह अपने राजा को बगीचे में ले गया, वहाँ गुप्त मन्त्रणा की। केवल वे दो ही वहाँ रहे। मैं पेड़ की डालियों के बीच बैठा रहा । उनकी सारी मन्त्रणा सुनता रहा। जब केवट्ट दम्भ के साथ कहने लगा ..-"यह हमारी मात्र चार कानों तक सीमित मन्त्रणा है।"
पर बींठ कर दी। जब उसने साश्चयं मह खोले ऊपर की ओर देखा, तब मैंने उसके मुंह मैं बीठ गिरा दी।" इस प्रकार उस शुक-शावक ने महौषध पण्डित को वह सब सुना दिया, जो उसने उत्तर पाञ्चाल नगर में देखा था, सुना था । पण्डित ने उससे पूछा"क्या उन्होंने अपना कार्यक्रम निर्धारित कर लिया ?" तोते ने कहा-"हां, उन्होंने ऐसा निश्चय कर लिया।"
___ महौषध पण्डित ने शुक-शावक का समुचित सत्कार करवाया, उसे स्वर्ण-निर्मित पिंजरे में सुकोमल बिछौने पर लिटवाया। फिर उसने मन-ही-मन कहा, पुरोहित केवट्ट यह नहीं जानता कि मैं भी महौषध हूँ। उसकी समस्त योजना को तहस-नहस कर डालूंगा।
___महौषध पण्डित ने नगर में जो दीन-कुलों के लोग रहते थे, उन्हें नगर से बाहर आबाद किया राष्ट्र, जनपद तथा नगर के द्वारों के सन्निकटवर्ती ग्रामों के समृद्धिशाली, सुसम्पन्न बड़े-बड़े परिवारों को बुलवाया, उन्हें नगर में आबाद किया। नगर में विपुल धनधान्य एकत्र करवाया, संगृहीत करवाया।
राजा चळनी ब्रह्मदत्त ने केवट द्वारा परिकल्पित योजना के अनुसार अपना अभियान चाल किया। उसने एक नगर पर घेरा डाला । जैसा पूर्ववणित है. केवट वहाँ के राजा से मिला, उसे समझाया. अपने अधीन कर लिया, अपने विजयाभियान में सम्मिलित कर लिया । फिर उसने चूलनी ब्रह्मदत्त से कहा-"राजन् ! सेना लिये अब हम अन्य राजा के नगर को घेरें।" राजा ने वैसा ही किया। केवट्ट की योजनानुसार यह क्रम चलता गया। अनेक राजा अधीन होते गये । महौषध द्वारा भिन्न-भिन्न राजाओं की सेवा में संप्रेषित,
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