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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड: ३
राजा-"आचार्य ! बतलाओ, क्या परामर्श करना चाहते हो?"
केवट्ट—'महत्त्वपूर्ण परामर्श एकान्त में होना चाहिए। राजन् ! नगर के भीतर एकान्त प्राप्त नहीं हो सकता। आएं, हम बगीचे में चलें।"
राजा-"आचार्य ! अच्छी बात है, ऐसा ही करें।" राजा ने अपनी फौज को बाहर छोड़ा । उद्यान के चारों ओर प्रहरी बिठाये । राजा केवट्ट के साथ उद्यान के भीतर प्रविष्ट हुआ तथा मंगल-शिला पर बैठा । शुक-शावक ने यह सारा क्रिया-कलाप देखा तो विचार किया, यहाँ मुझे कुछ ऐसा तथ्य प्राप्त होगा, जो महौषध पण्डित को बताने योग्य रहेगा। वह तोता उद्यान में प्रविष्ट हुआ। मंगल शालवृक्ष के पत्तों में अपने को गोपित कर बैठ गया।
राजा केवट से बोला-"आचार्य ! कहिए।" केवट ने कहा-"महाराज ! अपने कान इधर कीजिए । मन्त्रणा या परामर्श चार ही कानों में होना चाहिए। महाराज ! यदि आप मेरी योजना का अनुसरण करें तो मैं आपको सारे जम्बूद्वीप का सम्राट् बना दूंगा।"
चूळनी ब्रह्मदत्त बड़ा महत्त्वाकांक्षी था, तृष्णाधीन था। उसने ब्राह्मण की बात सुनी। बहुत हर्षित हुआ, कहने लगा-"आचार्य ! कहिए, जैसा आप कहेंगे, मैं उसका अनुपालन करूंगा।"
केवट्ट बोला- 'देव ! हम सेना एकत्र करेंगे। पहले छोटे-छोटे नगरों पर आक्रमण करेंगे, घेरा डालेंगे। मैं उन-उन नगरों के छोटे-छोटे द्वारों से भीतर प्रवेश करूंगा, एक-एक राजा से भेंट करूंगा और उसे कहूंगा-"राजन् ! आपको लड़ने की जरूरत नहीं है, केवल हमारा आधिपत्य स्वीकार कर लें। आपका राज्य आपका ही रहेगा। यदि आप हमारा प्रस्ताव स्वीकार नहीं करेंगे तो युद्ध होगा। हमारे पास बहुत बड़ी सेना है। निश्चय ही आप हार जायेंगे। यदि हमारा अनुरोध स्वीकार करेंगे, हम आपको अपना सहचर बना लेंगे, अन्यथा युद्ध कर आपको मौत के घाट उतार देंगे।"
"राजन ! इसी प्रकार हम आगे-से-आगे बढते जायेंगे। आशा है, एक सौ राजा हमारी बात स्वीकार कर लेंगे। हम उन राजाओं को अपने नगर में लायेंगे । बगीचे में सुरापानोत्सव हेतु एक विशाल मण्डप बनवायेंगे, चंदवा तनवायेंगे । वहाँ उपस्थित राजाओं को ऐसी मदिरा का पान करायेंगे, जिसमें विष मिला होगा। वे सभी वहाँ ढेर हो जायेंगे।
नों का राज्य, राजधानियाँ हमें सहज ही स्वायत्त हो जायेंगी। यों आप समग्र जम्बूद्वीप के सम्राट् बन जायेंगे।"
राजा बोला--"आचार्य ! जैसा आपने कहा, वैसा ही करेंगे।"
केवट्ट ने कहा - "राजन् ! यह मेरी मन्त्रणा है, जिसे केवल दो आपके तथा दो मेरे, चार ही कानों ने सुना है। इसे अन्य कोई नहीं जान सकता । अब विलम्ब न करें। शीघ्र यहाँ से निकल चलें।"
राजा बहुत प्रसन्न था। उसने कहा -"अच्छा, चलो चलें।
तोते के बच्चे ने राजा तथा केवट्ट का समस्त वार्तालाप सुना । ज्यों ही वार्तालाप समाप्त हुआ, किसी लटकती हुई चीज को उतारने की ज्यों उसने केवट्ट की देह पर बीठ कर दी। केवट्ट 'यह क्या है', ऐसा कहता हुआ विस्मय के साथ अपना मुंह खोले जब ऊपर की ओर देखने लगा, तोते के बच्चे ने उसके खुले हुए मुंह में बीठ गिरा दी। फिर वह 'किर
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