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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २६३ उन्हें संकल्पबद्ध किया, जब अति आवश्यक हो, मुझ से सम्बद्ध कार्य हो, तभी ये अक्षर प्रकट किये जाएं । योद्धा अपने सेनापति की आज्ञा के अनुसार उन-उन राजाओं के पास गये । उनको उनकी रुचि अनुरूप उपहार भेंट किये, उनसे निवेदन किया- "आपकी सेवा हेतु हम उपस्थित हुए हैं ।"
राजाओं ने उनसे पूछा - "तुम कहाँ से आये हो ?" उन्होंने अपने सही स्थान के बदले अन्यान्य स्थानों के नाम बतलाये । राजाओं ने उनकी सेवाएँ स्वीकार कर लीं । वे वहाँ रहने लगे । उन राजाओं के विश्वासपात्र बन गये ।
एकबल नामक राष्ट्र था । वहाँ के राजा का नाम शंखपाल था । वह शस्त्रास्त्र तैयार करवा रहा था, फौजें जमा करवा रहा था । महौषध का जो योद्धा वहाँ था, उसने उसे वहाँ का समाचार भिजवाया, यह भी कहलवाया - " कहा नहीं जा सकता - यह राजा क्या करना चाहता है ? आप किसी को भेजकर स्वयं असलियत जानने का प्रयत्न करें ।"
अद्भुत शुक- शावक
बोधिसत्त्व के यहाँ एक सुशिक्षित शुक- शावक – तोते का बच्चा था । उसने उसे अपने पास बुलाया और कहा – “सौम्य ! एकबल राष्ट्र में जाओ और यह पता लगाओ कि शंखपाल राजा शस्त्रास्त्र की तैयारियाँ क्यों कर रहा है, सेनाएँ जमा क्यों कर रहा है ? वह क्या करना चाहता है ? उसकी क्या योजना है ? तुम सारे जम्बूद्वीप में विचरण करो तथा मेरे लिए समाचार लाओ ।"
महौषध शुक- शावक को मधु के साथ खील खिलाई, स्वादिष्ट शर्बत पिलाये, सहस्रपाक - हजार बार पकाये हुए अति उत्तम, सुरभित, सुस्निग्ध तेल से उसके पंख चुपड़े, अपने भवन के पूर्ववर्ती गवाक्ष में खड़े हो उसे उड़ाया । वह एकबल राष्ट्र में पहुँचा, महौषध द्वारा वहाँ गुप्त रूप में नियोजित आदमी से भेंट की, राजा शंखपाल के सही समाचार जाने । फिर वह शुक- शावक जम्बूद्वीप में पर्यटन करता हुआ कम्पिल राष्ट्र के उत्तर पाञ्चाल नामक नगर में पहुँचा । उन दिनों कम्पिल राष्ट्र में चूळनी ब्रह्मदत्त नामक राजा राज्य करता था । केवट्ट नामक एक विज्ञ ब्राह्मण उसका अर्थानुशासक, धर्मानुशासक था । वह बहुत योग्य एवं चतुर था। वह सवेरे उठा तो दीए की रोशनी में अपने शयनागार पर दृष्टि डाली । शयनागर सुसज्जित, विभूषित एवं ऐश्वर्यपूर्ण था । ब्राह्मण केवट्ट विचार करने लगा— मेरा यह विपुल वैभव कहाँ से आया ? अपनी जिज्ञास का स्वयं उसी ने मनही मन उत्तर दिया-- यह और कहीं से नहीं आया, कम्पिल नरेश चूळनी ब्रह्मदत्त से प्राप्त हुआ। जिस राजा ने मुझे इतना वैभव दिया, मुझे चाहिए, मैं उसे समग्र जम्बूद्वीप में अग्रणी राजा के रूप में प्रतिष्ठापित करूं । जब राजा अग्र नरेश — सर्वोच्च राजा के रूप में संप्रतिष्ठ हो जायेगा, तब मैं स्वयं ही अग्र पुरोहित - सर्वोच्च पुरोहित बन जाऊगा ।
सवेरा हुआ। सूरज निकला । केवट्ट राजा चूळनी ब्रह्मदत्त के पास गया और प्रश्न किया- “राजन् ! रात में सुखपूर्वक नींद आई ? फिर कहा - "महाराज ! आपके साथ कुछ आवश्यक परामर्श करना चाहता हूँ ।। "
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