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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[ खण्ड ॥ ३
बोधिसत्त्व को फिर दया आई। वह राजा के पास आया तथा राजा को सुझाया - "राजन् ! ये अन्धे हैं, अज्ञ हैं, मूर्ख हैं । आप इनके अपराधों को भुला दें, माफ कर दें, कृपा कर इन्हें अपने पहले के पदों पर नियुक्त कर दें। हम आशा करें, भविष्य में ये कभी कुत्सित चेष्टा नहीं करेंगे ।" राजा महौषध पण्डित के विचारों से बहुत हर्षित हुआ । वह सोचने लगा - महौषध कितना महान् है, अपने शत्रुओं के प्रति भी इसके मन में कितना उदात्त मंत्री भाव है, अन्यों के प्रति तो इसके मंत्री भाव की बात ही क्या !
इस समग्र घटना क्रम का सेनक आदि पण्डितों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि वे निर्दन्त सर्पों की ज्यों अत्यन्त नम्र हो गये । उनके पास अब बोलने को क्या था ।
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राज्य का विकास
महौषध ने राज्य के अर्थानुशासक तथा धर्मानुशासक का कार्य सम्भाला, प्रशासनिकराजनैतिक सुदृढ़ता, धार्मिक एवं नैतिक अभ्युदय का कार्य उसने हाथ में लिया । उसने विचार किया, मैं विदहेराज के श्वेतछत्र राज्य के अत्यन्त उत्तरदायित्वपूर्ण पद पर हूँ । मुझे चाहिए, मैं कभी प्रमाद न करूं । उसने सोचा --- सबसे पहले राज्य का पाट नगर सुरक्षित होना चाहिए; अतः उसने नगर के चारों ओर बड़ा प्राकार बनवाया, बाहर तथा भीतर स्तंभ बनवाये । प्राकार के चारों ओर तीन खाइयाँ खुदवाई - एक जल की खाई, एक कीचड़ की खाई तथा एक शुष्क खाई । नगर में जो पुराने मकान थे, उनकी मरम्मत करवाई। बड़े-बड़े सरोवर खुदवाये। उनमें जल भरवाया । नगर में जितने धान्य प्रकोष्ठ थे, उन्हें भरवाया । हिमाद्रि- प्रदेश से विश्वासपात्र तपस्वी जनों के मार्फत जल-कमल के बीज मंगवाये । नगर की जल-प्रणालिकाओं को स्वच्छ कराया। नगर के बाह्य भाग की भी मरम्मत करवाई। यह सब करने का लक्ष्य भावी खतरे को रोकना था । अचानक कोई संकट आ जाए तो घबराना न पड़े ।
कूटनीतिक व्यवस्था
उस नगर में भिन्न-भिन्न स्थानों से आये हुए अनेक व्यापारी थे। उसने उनसे संपर्क साधा तथा जानकारी चाही कि वे किन-किन स्थानों से आये हुए हैं । व्यापारियों ने अपने-अपने स्थान बताये । महौषध ने फिर उनसे अलग-अलग पूछा कि तुम्हारे राजा को किस-किस वस्तु का शौक है ? उन्होंने अपने-अपने राजा की प्रियत्व - अभिरुचि का परिचय दिया । महौषध ने उनका सत्कार किया तथा उनको बिदा किया ।
महौषध ने अपने एक सौ योद्धाओं को वहाँ बुलाया, उनसे कहा - " मित्रो ! तुम लोगों को एक महत्त्वपूर्ण कार्य पर भेजता हूँ । तुम सुयोग्य हो, विश्वस्त हो। ये भेंटें हैं। इनको लेकर तुम एक सौ राजधानियों में जाओ । वहाँ के राजाओं को उनकी अभिरुचि के अनुसार उपहार भेंट करो। मेरे गुप्तचर के रूप में प्रच्छन्नतया उनकी सेवा में रहने का अवसर प्राप्त करो । उनके विश्वासपात्र बनो । उनके कार्यों तथा सलाह-मशविरों की जानकारी गुप्त रूप से मुझे भेजते रहो। मैं तुम्हारे परिवार का, बाल-बच्चों का यहाँ पर भली भाँति भरण-पोषण करता रहूंगा ।" यह कहकर महौषध ने उनमें किसी को कर्णभूषण, किसी को सोने की पादुका, किसी को तलवार तथा किसी को सोने की मालाएँ दीं, जिनपर महौषघ के नामाक्षर अंकित थे, पर इस कौशल से कि सामान्यतः देखने पर मालूम न पड़ें । उसने
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