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तत्त्व : आचार : कथानुयोग ] कथानुयोग - चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २७६ महौषध का समादर
राजा महौषध पर अत्यन्त प्रसन्न हुआ । उस पर श्वेत छत्र तनवाया, उसे राजसिंहासन पर बिठाया । स्वयं नीचे आसन पर बैठा, उससे कहा- "श्वेत छात्र-वासिनी देवी ने मुझसे चार प्रश्न किये। मैंने उनके उत्तर चारों पण्डितों से पूछे । वे प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सके । तात् ! तुम उन प्रश्नों के उत्तर दो।"
महौषध ने कहा- "राजन् ! चाहे श्वेत छत्र - वासिनी देवी ने पूछे हों, चातुर्महाराज आदि देवताओं ने पूछे हों, जिस किसी ने पूछे हों, मैं प्रश्नों के उत्तर दूंगा। प्रश्न बतलाएं ।”
राजा ने देवी द्वारा पूछा हुआ पहला प्रश्न उपस्थित करते हुए कहा- "हाथों से पीटता है, पैरों से पीटता है, मुंह पर मारता है, फिर भी वह प्रिय लगता है, ऐसा कौन है ?"
आकाश में जिस प्रकार चन्द्र प्रकट होता है, उसी प्रकार यह सुनते ही उसका अभिप्राय बोधिसत्व की बुद्धि में उदित हुआ । उसने कहा - "राजन् ! जब अपनी माता के अंक सोया हुआ शिशु अत्यन्त हर्षोल्लास पूर्वक खेलता है, अपनी माँ को अपने नन्हें नन्हें हाथों से, पैरों से पीटने लगता है, उसके बाल नोचने लगता है, उसके मुख पर भी चपेटे मारता है । तब मां उसे लाड़-प्यार से कहती है, अरे पगले ! मुझे इस प्रकार पीटते हो । इस प्रकार के और भी प्रिय वचन बोलती हुई अत्यन्त स्नेह से उसका आलिंगन करती है, उसको अपने स्तनों के मध्य लिटाकर उसका चुम्बन लेती है । ऐसे समय में वह शिशु मां को और अधिक प्रिय लगता है, उसी प्रकार वह पिता को भी प्रिय लगता है ।"
प्रश्न का यह इतना स्पष्ट, विशद उत्तर था, मानो आकाश में सूरज उगा दिया
गया हो ।
छत्रवासिनी देवी छत्र के गोलाकार विवर से बाहर निकली, अपना शरीरार्ध बाहर प्रकट किया तथा मधुर स्वर में धन्यवाद देती हुई बोली - " प्रश्न का उत्तर सर्वथा समुचित दिया गया है ।'
"
रत्न-जटित डलिया में भरे दिव्य की अर्चना की और वह अन्तर्हित हो गई । का पूजन - सम्मान किया ।
पुष्पों तथा सुगन्धित द्रव्यों से देवी ने बोधिसत्व राजा ने भी पुष्प, गन्ध आदि द्वारा बोधिसत्व
बोधिसत्व ने राजा से कहा- - "महाराज ! अब दूसरा प्रश्न पूछें।"
राजा ने दूसरा प्रश्न इस प्रकार पूछा - " जैसा मन में आता है, गाली देती है, उसके आने तक की इच्छा नहीं करती, तिस पर भी वह प्रिय होता है । तुम्हारे अनुसार वैसा कौन है ?
महौषध ने इसका इस प्रकार उत्तर दिया- "राजन् ! जब कोई बच्चा सात आठ वर्ष की आयु का हो जाता है, घर से सन्देश ले जाने में समर्थ हो जाता है तो माता उसे
१. हन्ति हत्थे हि पादेहि मुखञ्च परिसुम्मति । स वे राज पियो होति कं तंनमभिपस्ससि ॥ ५८ ॥ २. अक्कोसति यथाकामं आगमञ्चस्स न इच्छति । सवे राज पियो होति कं तेनमभिपस्ससि ॥ ५६ ॥
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