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________________ २७२ आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन [खण्ड:३ की चूड़ामणि चुराकर ले आऊँगा। पुक्कुस ! तुम राजा की सोने की माला चुराकर ले आना, काविन्द ! तुम राजा का बहुमूल्य कम्बल चुरा लाना, देविन्द ! तुम राजा की सोने की खड़ाऊं चुरा लाना।" ___ चारों चतुर थे ही, राजभवन में आवागमन था ही, अपनी योजनानुसार राजा की ये चारों वस्तुएँ चुरा लीं । सेनक ने चूड़ामणि को छाछ के घड़े में डाल दिया। उसके यहाँ मक्खन निकाल लेने पर जो छाछ बचती थी, वह उसे विक्र यार्थ एक दासी के हाथ नगर में भेजता था। उस दिन दासी से कहा-“यह छाछ का घड़ा ले जाओ। इसे महौषध पण्डित के घर ही देने का ध्यान रखना है, यदि और कोई लेना चाहे तो मत देना। तुम यह घड़ा लेकर जाओ, महौषध पण्डित के घर के दरवाजे पर इधर-उधर घूमते हुए आवाज लगाओ। महौषध के घर से कोई छाछ मांगे तो घड़े सहित वह छाछ दे दो।" ___ अपने स्वामी की आज्ञानुसार दासी छाछ का घड़ा लेकर महौषध के दरवाजे पर आई और 'छाछ ले लो, छाछ ले लो' की आवाज लगाने लगी । अमरा देवी उस समय अपने दरवाजे पर खड़ी थी। उसने देखा, यह दासी बार-बार यहीं आवाज लगा रही है और कहीं नहीं जाती, इसमें कुछ रहस्य होना चाहिए। उसने अपनी दासियों को जो उसके इर्द-गिर्द खड़ी थीं, घर के भीतर जाने का संकेत किया और उस छाछ बेचने वाली दासी को, आवाज देते हुए कहा-"अरी ! इधर आओ, छाछ लेंगे।" वह छाछ बेचनेवाली दासी उसके पास आई । तब अमरा देवी ने अपनी दासियों को आवाज़ दी। वे भतीर चली गई थीं; इसलिए आवाज उन तक नहीं पहुँची। उन्हें आते न देख अमरा ने उस छाछ बेचनेवाली दासी से कहा, जरा भीतर जाकर मेरी दासियों को बुला लाओ। वह छाछ का घड़ा अमरा देवी के पास रखकर भीतर गई। पीछे से अमरा देवी ने घड़े में हाथ डालकर जान लिया कि इसमें मणि है। वह दासी जब भीतर से लौटी तो अमरा देवी ने उससे पूछा- "तुम किसकी दासी हो?" उसने उत्तर दिया--"मैं सेनक पण्डित की दासी हैं।" अमरा देवी ने उस दासी का तथा उसकी मां का नाम पूछ लिया उससे कहा"ला छाछ दे जा।" दासी ने कहा- “आप छाछ ले रही हैं, मैं आपसे क्या कीमत लूं । घड़े के साथ ही रख लीजिए।" अमरा देवी ने कहा, तो रख जा। यह कहकर उस दासी को वहाँ से विदा किया। अमरा देवी ने यह लिख कर रख लिया कि सेनक पण्डित ने अमुक दासी की अमुक पुत्री के हाथ राजा की चूड़ामणि उपहार के रूप में प्रेषित की। पुक्कुस पण्डित ने चमेली के फूलों की डलिया में राजा की स्वर्णमाला रखी। उसे महौषध पण्डित के यहाँ भिजवाया । काविन्द पण्डित ने पत्तों की टोकरी में राजा का बहुमूल्य कम्बल रखा और उसे महौषध के घर भिजवाया। देविन्द पण्डित ने यव-राशि में राजा की स्वर्ण-पादुका रखी, महौषध के यहाँ प्रेषित की। अमरा देवी ने ये सभी वस्तुएँ लीं। कागज पर तत्सम्बन्धी नाम आदि अंकित किये तथा महौषध को सूचित किया । वस्तुएँ अपने यहाँ सुरक्षित रख लीं। वे चारों पण्डित राजा के यहाँ आये और प्रसंगोपात्त रूप में राजा से पूछा-'देव ! क्या आप अपने मस्तक पर चूड़ामणि धारण नहीं करते?" ____Jain Education International 2010_05 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002623
Book TitleAgam aur Tripitak Ek Anushilan Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagrajmuni
PublisherConcept Publishing Company
Publication Year1991
Total Pages858
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, Conduct, & Story
File Size17 MB
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