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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २६६
महौषध अमरा द्वारा बताये गये मार्ग से उसके घर पहुँचा। अमरा की माता ने ज्यों ही उसे देखा, कहा-"स्वामिन् ! खिचड़ी तैयार करूं ?"
महौषध-"माता ! आपकी पुत्री अमरा ने मार्ग में खिचड़ी दे दी है।' अमरा की माता ने मन-ही-मन कल्पना की, संभवतः मेरी पुत्री को मांगने आया हो।
महौषध जानता था कि यह परिवार निर्धन हो गया है, फिर भी उसने गृहस्वामिनी से कहा--"मां! मैं दर्जी का काम जानता हूँ। सीने के लिए वस्त्र दो तो सिलाई कर दूं।"
गहिणी-सीने को वस्त्र तो है, किन्तु, सिलाई का पारिश्रमिक नहीं है।"
महौषध-"मां ! पारिश्रमिक की आवश्यकता नहीं है । लाओ, वस्त्र दो, सिलाई कर दूं।"
अमरा की माता ने पुरातन वस्त्र ला दिये । बोधिसत्त्व ने उन्हें सी दिया और कहा"और भी हो तो लाओ।" वह जो-जो वस्त्र लाती, बोधिसत्त्व उन्हें सीकर तैयार करते जाते । पुण्यशाली पुरुषों का कृतित्व सभी के लिए बड़ा लाभप्रद होता है।
महौषध ने गृहिणी से कहा- "मां ! और भी जो पास-पड़ोस के लोग हों, उहें सूचित कर दो। जो भी वस्त्र सिलवाना चाहें, सिलवा लें।"
गृह-स्वामिनी ने सारे गाँव में सूचना कर दी। गांव वाले अपने-अपने घरों से वस्त्र लाते गये, बोधिसत्त्व सिलाई करते गये। उन्होंने केवल एक दिन में सहस्र मुद्राएँ अजित कर लीं।
गह-स्वामिनी ने सवेरे भात तैयार किये और खिलाये। फिर पूछा-"सायंकाल कितना पकाऊँ ?"
महौषध बोला- "इस घर में जितने खाने वाले मनुष्य हैं, उस परिमाण के अनुरूप पकाओ।"
गद-स्वामिनी ने अनेक प्रकार की शाक-सब्जियाँ. दाल तथा यथेष्ट मात्रा में भात पकाये।
__ अमरा सायंकाल अपने सिर पर लकड़ियों की भारी तथा पत्ते लिये वन से लौटी। उसने दरवाजे के सामने लकड़ियाँ और पत्ते डाल दिये तथा वह पीछे के दरवाजे से घर के भीतर आई । उसका पिता रात को देर से घर आया। महौषध ने उत्तम रस युक्त, स्वादिष्ट भोजन किया। अमरा के माता-पिता ने भोजन किया। उनके भोजन कर चुकने पर अमरा ने खुद भोजन किया। फिर अपने माता-पिता के चरण धोये । महोषध कुमार के चरण धोये।
__ महौषध अमरा की कुछ और परीक्षा करना चाहता था। इसलिए वह कुछ दिन वहीं रुक गया।
एक दिन महौषध ने अमरा की परीक्षा हेतु उससे कहा-"कल्याणि । अर्धनालीपरिमित धान लो । उससे मेरे खिचड़ी, पूए और भात पकाओ।"
अमरा ने कहा-'बहुत अच्छा, स्वामिन् ! मैं आपके आदेशानुसार करूंगी।" ऐसा कहकर उसने वह धान कूटा । कूटने से चूरा बने चावल, बीच के उत्तमांश चावल तथा कणिकाएँ -ये तीन प्रकार की वस्तुएँ प्राप्त हुई । अमरा ने चूरा चावलों से खिचड़ी, बीच के उत्तम चावलों से भात तथा कणिकाओं से पूए पकाये। उनके मेल की सब्जियां तैयार की। महौषध को भोजन के लिए बिठाया। उसे खिचड़ी तथा सब्जियाँ परोसीं । महौषध ने
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