________________
तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २६७
महारानी बोली-'अच्छा, तुम जो सोचते हो, ठीक है, वैसा ही करो।"
महौषध ने महारानी को प्रणाम किया और वह अपने घर गया, अपने साथियों को यथोचित संकेत दिये। उसने वेश बदला, पिंजारे का सामान लिया और वह एकाकी ही नगर के उत्तर द्वार से निकल कर उत्तर यवमझक गाँव आया।
गाँव का पुराना श्रेष्ठि-कूल संयोगवश निर्धन हो गया था। उस खानदान में अमरा नामक एक कन्या थी। वह रूपवती थी, समग्र शुभ लक्षणों से युक्त थी। उस दिन उसने सवेरे ही पतली खिचड़ी पकाई थी। पिता खेत पर था। पिता को खिचड़ी ले जाकर देने हेतु वह घर से निकली। उसी मार्ग से आगे बढ़ी, जिससे महौषध आ रहा। महौषध की उस पर दष्टि पड़ी। उसने देखा, यह कन्या नारी के उत्तम लक्षणों से युक्त है। यदि इसका विवाह नहीं हुआ है, तो यह मेरी गृहिणी होने के योग्य है। अमरा ने ज्यों ही उसको देखा, उसके मन में विचार आया, यदि ऐसे सत्पुरुष के घर में जाने का संयोग बन जाए तो मैं परिवार की भली माँति परिपालना, सेवा-शुश्रूषा कर सकती हूँ।
महौषध ने मन-ही-मन विचार किया, यह विवाहिता है या अविवाहिता, मैं नहीं जानता । मैं हाथ के संकेत द्वारा इससे पूछू । यदि यह बुद्धिमती होगी तो उसे समझ लेगी। यह सोचकर महौषध ने दूर खड़े-खड़े अपनी मुट्ठी बन्द की। अमरा ने समझ लिया कि यह मेरे विवाहित होने न होने के सम्बन्ध में जानना चाहता है। उसने अपना हाथ खोल दिया। महौषध उसके इस संकेत से समझ गया कि यह विवाहित नहीं है। वह उसके नजदीक आ गया और उससे पूछा-'कल्याणि ! तुम्हारा क्या नाम है ?"
वह बोली-"स्वामिन् ! जो वर्तमान में नहीं, भूत में नहीं, त्रिकाल में नहीं, मेरा वैसा नाम है।"
महौषध-"इस जगत् में कोई ऐसा नहीं है, जो अमर हो। तुम्हारा नाम अमरा होना चाहिए।"
अमरा- "हां, स्वामिन् ! मेरा यही नाम है।" महौषध – “यह खिचड़ी किसके प्रयोजन में है, जो तुम ले जा रही हो?" अमरा- "स्वामिन् ! यह खिचड़ी पूर्व-देवता हेतु है।"
महौषध-"पूर्व-देवता तो माता-पिता कहे जाते हैं। प्रतीत होता है, तुम अपने पिता के लिए यह खिचड़ी लिये जा रही हो।"
अमरा-"हां, स्वामिन् ! मैं अपने पिता के लिए यह खिचड़ी ले जा रही हैं।" महौषध-"तुम्हारा पिता क्या कार्य करते है ?" अमरा-"मेरे पिता एक के दो करते हैं।"
महौषध-"मेरी कल्पना है, एक से दो करने का तात्पर्य हल चलाना है-हल द्वारा भूमि को दो-दो भागों में बाँटना है। इससे लगता है, तुम्हारे पिता खेती करते हैं।"
अमरा-"हां, स्वामिन् ! वे खेती करते हैं।" महौषध-"तुम्हारे पिता किस स्थान पर हल जोतते हैं ?"
अमरा-"स्वामिन् ! वे ऐसे स्थान पर हल जोतते हैं, जहाँ जाकर वापस कोई नहीं लौटता।"
Jain Education International 2010_05
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org