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आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३
जिस समय सेनक यों निराश बैठा था, बोधिसत्त्व ने प्रज्ञा-प्रशस्ति ख्यापित करते हुए कहा-"उत्तम पुरुषों ने निःसन्देह प्रज्ञा की श्लाघा की है । जो मनुष्य भोगों में अनुलिप्त रहते हैं, उनको ही लक्ष्मी प्रिय लगती है। वृद्धों का-ज्ञान वृद्धों का-उत्कृष्ट ज्ञानियों का ज्ञान इतना उच्च होता है कि जगत् में उसके साथ किसी की तुलना नहीं की जा सकती। लक्ष्मी प्रज्ञा का भी अतिक्रमण नहीं कर सकती-प्रज्ञा से उत्तम नहीं हो सकती।"१
राजा ने यह सुना। इस विवेचन से वह बहुत हर्षित हुआ। मेघ ज्यों जल की वर्षा करते हैं, उसी प्रकार उसने बोधिसत्त्व का धन की वर्षा द्वारा-विपुल पुरस्कार द्वारा सम्मान किया। सम्मान कर राजा ने उससे कहा-“महौषध ! जो-जो मैंने प्रश्न किये, उनके तुमने यथोचित उत्तर दिये। केवल तुम ही धर्म-तत्त्व के द्रष्टा हो । तुम्हारे द्वारा दिये गये समाधान से मुझे बहुत परितोष हुआ है। मैं तुम्हें । एक हजार गायें, वृषभ, गज, उत्तम अश्व जुते दश रथ तथा सुसम्पन्न सोलह ग्राम देता हूँ।"२
यों यह कहकर राजा ने महौषध पण्डित को ये उपहार दिये।
वधू की खोज
महौषध के रूप में विद्यमान बोधिसत्त्व का वैभव उत्तरोत्तर बढ़ता गया। उसकी अवस्था सोलह वर्ष की हो गई। महारानी उदुम्बरा महौषध की सब बातों का ध्यान रखती थी। उसने विचार किया कि मेरा छोटा भाई महौषध सोलह वर्ष का हो गया है। उसके पास विपुल वैभव है। अब यह उचित है कि उसका विवाह कर दिया जाए। महारानी ने यह बात राजा को निवेदित की। इसे सुनकर राजा हर्षित हुआ ! उसने कहा-'देवी ! तुमने ठीक कहा है। तुम महौषध को भी अपने विचारों से अवगत करा दो।"
महारानी उदुम्बरा ने महौषध को यह जानकारी दी तथा उसको विवाह का सुझाव दिया। उसने अपनी बहिन का सुझाव स्वीकार किया। तब उदुम्बरा ने उससे पूछा"भैया ! क्या तुम्हारे लिए कन्या ले आएं ?"
__ महौषध ने मन-ही-मन विचार किया—संभव है, इन द्वारा लाई गई कन्या मुझे पसन्द न आए; इसलिए अच्छा हो, मैं खुद ही कन्या की खोज करूं । यह सोचकर उसने उदुम्बरा देवी से कहा- "कुछ दिन महाराज से इस सम्बन्ध में और कुछ न कहना । मैं स्वयं कन्या की खोज कर अपनी पसन्द की बात तुम्हें कहूंगा।"
१. अद्धा हि पञ व सतं पसत्था, कन्ता सिरी भोगरता मनुस्सा। आणच बुद्धानमतुल्यरूपं, पछे न अच्चेति सिरी कदाचि ॥३६॥ २. यं तं अपुच्छिम्ह अकित्तयी नो, महोसध केवलधम्म दस्सी । गवं सहस्सं उसमं च नागं, आजञयुत्ते च रथे दस इमे। पञ्हस्स वेय्याकरणेन तुट्ठो, ददामि ते गाम वरानि सोलस ॥४०॥
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