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२६० आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन
[खण्ड : ३ धनवान पुरुष के आज्ञानुवर्ती-परिचारक हो जाते हैं। यह देखकर मेरा कहना है, प्राज्ञ -प्रज्ञाशील पुरुष तुच्छ है, श्रीमान्-- वैभवशील उत्तम है।"
राजा ने सेनक पण्डित से यह सुना । तदनन्तर उसने सेनक के साथी तीन पण्डितों को न पूछकर सीधे अभिनव पण्डित महौषध से कहा-प्रखर प्रज्ञाशाली ! उत्तम धर्मदर्शी ! महौषध ! मैं तुमसे यह पूछता हूं- 'बाल अज्ञानी यशस्वी-श्रीसम्पन्न, धन-वैभव के कारण कीर्तिमान् पुरुष तथा अल्पभोग --बहुत कम भोग्य सामग्री युक्त-धनरहिन पण्डित-. ज्ञानी-इन दोनों में कुशल जन-सुयोग्य पुरुष किसे श्रेयस्कर-श्रेष्ठ बतलाते हैं।"२
इस पर महौषध ने कहा-"राजन् सुनिए-अज्ञानी पुरुष यहाँ- इस जगत् में जो कुछ है, वही श्रेयस्कर है, ऐसा मानता है; इसलिए वह पाप-कर्म करता रहता है। वह केवल इहलोकदर्शी-इसी लोक को यथार्थ मानने वाला होता है, परलोकदर्शी नहीं होता; अतः वह यहाँ तथा आगे-इस लोक में और परलोक में कालिमा से पाप से गृहीत होता है। यह देखते हुए मेरा कथन है कि धनी मूर्ख की अपेक्षा निर्धन प्रज्ञाशाली श्रेयस्कर है-श्रेष्ठ
राजा ने सुना । उसने सेनक से कहा- "महौषध पण्डित कहता है कि धनी की अपेक्षा प्राज्ञ-ज्ञानी श्रेष्ठ होता है।"
सेनक बोला-"राजन् ! महौषध अभी बच्चा है। अब तक उसके मुंह से दूध की गन्ध ही नहीं गई है, वह क्या जाने ? देखिए-न शिल्प से, कला-कौशल से योग्य पदार्थ मिलते हैं, न बन्धु-बान्धवों से ही प्राप्त होते हैं तथा न देह-द्युति ही उन्हें प्राप्त करा सकती है। इस जगत् में एक महामूर्ख को भी हम सुखोपभोग करते देखते हैं; क्योंकि उसे लक्ष्मी
१. धीरा व बाला च हवे जनिन्द ! सिप्पूपपन्ना च असिप्पिनो च। सजातिमन्तो पि अजातिमस्स, यसस्सिनो पेस्सकरा भवन्ति । एतम्पि दिस्वान अहं वदामि, पञो निहीनो सिरिमावसेय्यो ॥२१॥ २. तवम्पि पुच्छामि अनोमपच ! महोसध ! केवलधम्मदस्सी। बाल यसस्सिं पण्डितं अप्पभोगं, कमेत्थ सेय्यो कुसला वदन्ति ॥२२॥ ३. पापानि कम्मानि करोति बालो,
इधमेव सेय्यो इति मञमानो। इधलोकदस्सी परलोकं अदस्सी, उभयत्थबालो कलिमग्गहोसि । एतम्पि दिस्वान अहं वदामि, पोव सेय्यो न यसस्सि बालो॥२३॥
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