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तत्त्व : आचार : कथानुयोग] कथानुयोग-चतुर रोहक : महा उम्मग्ग जातक २५६ पूछ कर ही राजा के प्रश्न का समाधान किया, राजा ने पाँचों को समान रूप से पुरस्कृत किया तो उसने विचार किया कि मूंग की दाल तथा मास की दाल में कुछ भी भेद न करने की ज्यों यह उचित नहीं हुआ। क्या मेरे कनिष्ठ बन्धु का विशेष सम्मान नहीं होना चाहिए?
उदुम्बरा देवी राजा के पास गई और कहा- "स्वामिन् ! इस प्रश्न का समाधान किसने किया?"
राजा बोला-"कल्याणि ! मेरे पाँचों पण्डितों ने इस प्रश्न का समाधन किया।"
उदुम्बरा-"राजन् ! आपके पुराने चारों पण्डितों ने उस प्रश्न का समाधान किससे पूछा-किससे जाना?"
राजा - "कल्याणि ! मैं यह नहीं जानता।"
उदुम्बर- “महाराज ! आपके वे चारों पण्डित मूर्ख हैं। वे ऐसे गहन प्रश्नों को क्या समझे । वे मूर्ख नष्ट न हों, आप द्वारा दण्डित न हों, यह सोचकर महौषध पण्डित ने उस प्रश्न का समाधान उन्हें समझाया, सिखलाया। आपने सबका एक-समान सम्मान किया, यह उपयुक्त नहीं हुआ। महौषध पण्डित विशेष सम्मान का पात्र है।"
राजा को जब यह मालूम हुआ कि चारों पण्डितों ने महौषध पण्डित से ही प्रश्न का समाधान सीखकर बतलाया, महौषध पण्डित ने इस बात को प्रकट तक नहीं होने दिया। उसने अनुभव किया, वह कितना गंभीर है। राजा बहुत परितुष्ट हुआ। उसने मन-ही-मन विचार किया-मुझे महौषध पण्डित का विशेष सम्मान करना चाहिए । अस्तु, एक प्रश्न पूछकर, उसका उत्तर प्राप्त कर, उसे विशेष रूप से सत्कृत-सम्मानित करूँ, राजा ने यह निश्चय किया।
कोन बड़ा-प्राज्ञ या धनी ?
एक दिन का प्रसंग है, पाँचों पण्डित राजा की सन्निधि में सानन्द बैठे थे। राजा बोला-"एक प्रश्न पूछना चाहता हूं।"
सेनक- “महाराज पूछिए।"
राजा ने पूछा-एक ऐसा पुरुष है, जो प्रज्ञोपेत है-प्रखर बुद्धि से युक्त है, किन्तु, श्रीविहीन है- लक्ष्मीरहित है, निर्धन है। दूसरा ऐसा पुरुष है, जो धन-वैभव-संपन्न है, यशस्वी है, किन्तु, अपेतप्रज्ञ-प्रज्ञाशून्य है-मूर्ख है। सेनक ! मैं तुमसे प्रश्न करता हूँ, कुशल-सुयोग्य पुरुष किसको श्रेष्ठ बतलाते हैं ?"१
इस सम्बन्ध में जैसी परम्परानुगत मान्यता थी, सेनक उतना ही जानता था। अपनी जानकारी के अनुसार उसने फौरन जबाब दिया-"राजन् ! धीर- धैर्यशीलगंभीर व्यक्तित्व शील, शिल्पोपपन्न-सुयोग्य शिल्पकार, निपुण कलाकार, सुजातिमान् -उच्च जाति में उत्पन्न पुरुष भी बाल-अज्ञानी, मूर्ख, अशिल्पीशिल्प एवं कला में अनभिज्ञ, अजातिमान्-अनुच्च जाति में-निम्न जाति में उत्पन्न
१. पञ्चायुपेतं सिरिया विहीनं, यसस्सिनञ्चापि अपेतपनं । पुच्छामि तं सेनक ! एतमत्थं, कमेत्थ सेय्यो कुसला वदन्ति ॥२०॥
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